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धर्मायण अंक संख्या 140 तीर्थयात्रा-विशेषांक
यात्रा चाहे वह किसी प्रकार की न हो व्यक्ति को सर्वथा नये परिवेश में जाना पड़ता है, जिसमें वह नये-नये लोगों से मिलता है, ... -
धर्मायण अंक संख्या 139 सन्त-साहित्य विशेषांक
सनातन धर्म में हर काल में लोक-कल्याण की भावना से समता का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है। काल के प्रवाह में जब कोई वस्तु ... -
धर्मायण अंक संख्या 138 लोक-संस्कृति अंक
लोक और वेद ये दो शब्द हम सहचर के रूप में व्यवहार करते हैं। वेद सम्पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान का रूप है तो लोक लौकिक ... -
धर्मायण अंक संख्या 135 पितृभक्ति विशेषांक
आज विमर्श आवश्यक है कि सनातन धर्म में पूर्वजों की अवधारणा क्या है? क्या उनका अस्तित्व मरणोपरान्त नहीं रहता है, क्या उनका स्मरण ... -
धर्मायण अंक संख्या 137 विवाह-विशेषांक
हमें सनातन धर्म में वर्णित विवाह के स्वरूप को दुहराने की आवश्यकता है। सनातन धर्म कहता है कि विवाह एक पवित्र संस्कार है। एक ... -
धर्मायण अंक संख्या 134 शाप-विमर्श विशेषांक
शाप का विवेचन करते हुए हमारे मन में अकसर यह भावना बन जाती है कि इस शाप में शाप देने वाले की गलती है ... -
धर्मायण अंक संख्या 133 फलश्रुति विशेषांक
उपासना में फलश्रुति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह मानव की प्रवृत्ति है कि “प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते” और वही प्रयोजन फल है और उसका ... -
धर्मायण अंक संख्या 132 योग विशेषांक
हमें विचार करना चाहिए कि क्या भारतीय योग की परम्परा इतनी ही है अथवा इससे कही अधिक व्यापक तथा उपादेय है? यदि हम पतंजलि ... -
धर्मायण, अंक संख्या 131, वनस्पति-उपासना अंक
आज जब विकास के नाम पर, बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ते आवासीय क्षेत्र के नाम पर वनों को काटकर सड़कें चौड़ी की जातीं हैं, ...
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक