Tag: Dharmayan
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धर्मायण अंक संख्या 139 सन्त-साहित्य विशेषांक
सनातन धर्म में हर काल में लोक-कल्याण की भावना से समता का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है। काल के प्रवाह में जब कोई वस्तु अप्रासंगिक हो ... -
धर्मायण अंक संख्या 138 लोक-संस्कृति अंक
लोक और वेद ये दो शब्द हम सहचर के रूप में व्यवहार करते हैं। वेद सम्पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान का रूप है तो लोक लौकिक ज्ञान को ... -
धर्मायण अंक संख्या 137 विवाह-विशेषांक
हमें सनातन धर्म में वर्णित विवाह के स्वरूप को दुहराने की आवश्यकता है। सनातन धर्म कहता है कि विवाह एक पवित्र संस्कार है। एक लोटा जल, ... -
धर्मायण अंक संख्या 134 शाप-विमर्श विशेषांक
शाप का विवेचन करते हुए हमारे मन में अकसर यह भावना बन जाती है कि इस शाप में शाप देने वाले की गलती है और हम ... -
धर्मायण अंक संख्या 133 फलश्रुति विशेषांक
उपासना में फलश्रुति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह मानव की प्रवृत्ति है कि “प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते” और वही प्रयोजन फल है और उसका कथन फलश्रुति। ... -
धर्मायण अंक संख्या 132 योग विशेषांक
हमें विचार करना चाहिए कि क्या भारतीय योग की परम्परा इतनी ही है अथवा इससे कही अधिक व्यापक तथा उपादेय है? यदि हम पतंजलि के योगसूत्र ... -
धर्मायण, अंक संख्या 130, रामलीला अंक
रामलीला रामकथा की रंगमंचीय प्रस्तुति है। यद्यपि वर्तमान काल में इलैक्ट्रॉनिक क्रान्ति के कारण इस परम्परा को बहुत आघात लगा है, पर इसकी जड़ें बहुत प्राचीन ... -
धर्मायण, अंक संख्या 129, रामचरितमानस अंक
आज इसी मशीन की शैली में रामचरितमानस की दुर्व्याख्याएँ हो रही हैं। उद्देश्य स्पष्ट है- समाज को तोड़ना। जिस रामचरितमानस ने मॉरिशस गये गिरमिटिया मजदूरों को ... -
धर्मायण, अंक संख्या 127, वायु-विशेषांक
व्यवहार में भी हम देखते हैं कि कुछ संकेंड के लिए यदि प्राणी को प्राण-वायु मिलना बंद हो जाये तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इससे ...
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक