Tag: Dharmayan
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धर्मायण, अंक संख्या 113, हनुमान अंक, 2
यह अंक “सकल अमंगल-मूल निकंदन” यानी सभी विघ्न-बाधाओं की जड़ को ही उखाड़ फेंकने वाले महावीर हनुमानजी को अर्पित है। हनुमानजी के देवत्व स्वरूप की सबसे ... -
डा. नागेन्द्र कुमार शर्मा
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, राम जयपाल महाविद्यालय, छपरा, (जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा) -
धर्मायण, अंक संख्या 112, कार्तिक 2078 वि.सं., हनुमद्-विशेषांक, भाग 1
यह अंक “सकल अमंगल-मूल निकंदन” यानी सभी विघ्न-बाधाओं की जड़ को ही उखाड़ फेंकने वाले महावीर हनुमानजी को अर्पित है। हनुमानजी के देवत्व स्वरूप की सबसे ... -
श्री महेश प्रसाद पाठक
‘अवतार मीमांसा’, ‘कवच-कलश’, ‘नाम में क्या रखा है!’, ‘ईश्वर-विमर्श’ आदि पुस्तकों के लेखक श्री महेश प्रसाद पाठक धर्मायण पत्रिका के लेखक हैं। -
लेखकों से निवेदन, शोधपरक आलेख आमन्त्रित, लेखकों को दी जाती है सम्मान-राशि।
‘धर्मायण’ के अगले अंक, (अंक संख्या 118, वैशाख, सं. 2079) के लिए प्रस्ताव की पृष्ठभूमि- “लोक-देवताओं के रूप में परशुराम, नरसिंह, कूर्म एवं बुद्ध की उपासना” -
डा. सुन्दरनारायण झा
सहाचार्य वेदविभाग, (अ.प्रा.) श्रीलालबहादुरशास्त्रीराष्ट्रियसंस्कृतविश्वविद्यालयः, बी-4, कुतुबसांस्थानिकक्षेत्रम्, नवदेहली-16 -
डॉ० विजय विनीत
अवकाशप्राप्त अध्यापक, हिन्दी विभाग, जनता महाविद्यालय सूर्यगढ़ा (लखीसराय), 1980 से लगातार हिन्दी-अध्यापन एवं लेखन के प्रति समर्पित तथा भाषावादी अध्ययन के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं। -
शत्रुघ्नश्रीनिवासाचार्य पंडित शम्भुनाथ शास्त्री ‘वेदान्ती’
शत्रुघ्नश्रीनिवासाचार्य पंडित शंम्भुनाथ शास्त्री ‘वेदान्ती’ भगवद्भक्ति तथा भगवत्-तत्त्व-चिन्तन में लीन पण्डित शम्भुनाथ शास्त्री न केवल अपने प्रवचन से भगवान् की गाथाओं का प्रचार करते, बल्कि लेखन... -
श्री गिरिजानन्द सिंह
1. मैथिली कथा 'परंपरा', 'पूजाक पोथी', 'हमरा बिसरब जुनि' एवं Banaili, Roots to Raj हिंदी रूपांतर "बनैली मूल से राज तक" के लेखक श्री गिरिजानन्द सिंह इतिहास ... -
आलेख संख्या- 12. “कालिदासकृत रघुवंशकी रामायण-कथा- रामकथा” लेखक आचार्य सीताराम चतुर्वेदी भाग 2
देश के अप्रतिम विद्वान् आचार्य सीताराम चतुर्वेदी हमारे यहाँ अतिथिदेव के रूप में करीब ढाई वर्ष रहे और हमारे आग्रह पर उन्होंने समग्र वाल्मीकि रामायण का ...
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक