‘अवतारकथामृतʼ नामक यह महाकाव्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता गोपालचन्द्र की कृति है। उनके गुरु गिरिधर दास थे। गुरु के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने अपने सभी ग्रन्थों की रचना गिरिधर दास के नाम से की है। यह महाकाव्य नवलकिशोर प्रेस लखनउ से दो खण्डों में प्रकाशित हुआ था। इसके प्रथम खण्ड में दशावतार के रूप में भगवान् परशुराम के अवतार की सम्पूर्ण कथा छन्दोबद्ध है। इस अंश की पुष्पिका के अनुसार संवत् 1896, अग्रहण कृष्ण प्रतिपदा, गुरुवार के दिन इस अंश का लेखन पूर्ण हुआ था। तदनुसार यह 1840ई. के अक्टूबर में रचित अंश है।
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