वॆङ्कट कवि की कृति ‘सुन्दरेश्वरजाये- श्री रवि ओझा

यह सनातन धर्म की चरम विशेषता है कि दक्षिण एवं उत्तर भारत की परम्परा एक-दूसरे के साथ भावात्मक स्तर पर इतना जुड़ा हुआ है कि उसे द्राविड़ एवं औदीच्य में बाँट नहीं सकते हैं। दक्षिण के वेंकट कवि की रचनाओं में हम मीनाक्षी के साथ राधा, सीता, सरस्वती, हनुमान् आदि की स्तुति पाते हैं। ‘सुन्दरजायेʼ रचना में तो गायक जब समस्त पदों में से पहले पद को अलग कर ‘सुन्दरि जायेʼ के रूप में सम्बोधन में गाते हैं तो एक पंक्ति दो प्रकार के अर्थ व्यक्त करने लगते हैं, जिसमें उत्तर एक दक्षिण का भेद मिट जाता है। यही इस रचना की विशेषता है। प्रौद्यौगिकी अध्ययन से जुड़े एक छात्र ने इस वैशिष्ट्य को पहचान कर एक आलेख प्रेषित किया है। हम इनके उज्ज्वल लेखकीय भविष्य की कामना करते हैं।
- Ojha, Ravi, “vainkat kavi kee krti ‘sundareshvarajaaye”, 2021, Dharmayan, Mahavir mandir, Patna, vol. 106, pp. 15-20.
- ओझा, रवि, “वॆङ्कट कवि की कृति ‘सुन्दरेश्वरजाये”, 2021, धर्मायण, महावीर मन्दिर पटना, अंक सं. 106, पृ. 15-20.
- (Title Code- BIHHIN00719),
- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
- मूल्य : पन्द्रह रुपये
- प्रधान सम्पादक आचार्य किशोर कुणाल
- सम्पादक भवनाथ झा
- पत्राचार : महावीर मन्दिर, पटना रेलवे जंक्शन के सामने पटना- 800001, बिहार
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महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक