मातृशक्ति का सम्पूर्ण रूप देवी सीता में समाहित -श्री राजीव नंदन मिश्र ‘नन्हेंʼ

ऋग्वेद का वागाम्भृणी सूक्त शक्ति-विमर्श का प्राचीनतम साक्ष्य है, जिसमें देवी कहती हैं कि मैं रुद्रों, वसुओं, आदित्यों और विश्वेदेवों की सहचारिणी हूँ। मैं रुद्र के लिए धनुष् पर प्रत्यञ्चा चढ़ाती हूँ। इस सूक्त के परिप्रेक्ष्य में शक्ति-विमर्श करते हुए लेखक ने सीता की कथा को उस व्यापक फलक पर प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया है। साथ ही, नारी-शक्ति को भी उसी भावभूमि पर मर्यादित कर उसे दिव्य स्वरूप में प्रतिबिम्बित किया है।
- Mishra, Rajiv Nandan, “maatrshakti ka sampoorn roop devee seeta mein samaahit”, 2021, Dharmayan, Mahavir mandir, Patna, vol. 106, pp. 29-33.
- मिश्र, राजीव नन्दन, “मातृशक्ति का सम्पूर्ण रूप देवी सीता में समाहित”, 2021, धर्मायण, महावीर मन्दिर पटना, अंक सं. 106, पृ. 29-33.
- (Title Code- BIHHIN00719),
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महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक