शोधपरक लेखों में संदर्भ (Reference) देने की पद्धति
शोधपरक लेखों में संदर्भ (Reference) देने की पद्धति
ध्यातव्य है कि आलेख में अधीत पुस्तक-सूची, सन्दर्भ-सूची दे देना पर्याप्त नहीं होता है।
आलेख के लिए आवश्यक है कि मूल आलेख में Superscript में संख्या देकर Footnote नियमानुसार लिखा जाना चहिए। सन्दर्भ रहने पर ही आलेख विश्वसनीय होता है। हमारे पुराने लेखक जहाँ पर उद्धरण देते हैं, वहीं पर सन्दर्भ भी लिख देते हैं। कतिपय परिस्थितियों में वह सन्दर्भ अधूरा होता है। यदि हम मूल आलेख के बीच में साथ-साथ उचित सन्दर्भ का प्रयोग करेंगे, तो वह पाठकों के लिए वे अवरोध उत्पन्न करते है। अतः सन्दर्भ या तो प्रत्येक पृष्ठ पर नीचे दिया जाना चाहिए या आलेख के अन्त में। प्रत्येक पृष्ठ पर जो सन्दर्भ दिया जाता है, उसे पाद-टिप्पणी (Footnote) कहते हैं, किन्तु जो आलेख के अन्त में एक ही जगह दिया जाता है, उसे अन्त-टिप्पणी (End note) कहते हैं। दोनों में से कोई एक का होना आवश्यक है, अन्यथा उसे हम शोध-आलेख नहीं कहेंगे। उस आलेख की कोई विश्वसनीयता नहीं होती है।
कम्प्यूटर पर सन्दर्भ जोड़ने के लिए सहायता
यदि आप कम्प्यूटर पर टाइप करते हैं तो Footnote के लिए Microsoft Word पर काफी सुविधा हो जाती है। इस पर व्यवस्था है कि आप आसानी से Footnote लिख सकते हैं। इसके लिए आपको References वाले tab में जाना होगा। आलेख में जहाँ Footnote डालना है, वहाँ cursor रख कर Insert Footnote पर क्लिक करेंगे, तो पृष्ठ के नीचे में संख्या के साथ लिखने के लिए cursor चला जायेगा। वहाँ पर आपको जो Footnote लिखना हो, उसे लिख सकते हैं। बाद में Footnote को End note में भी बदल सकते हैं। इससे सुविधा होगी कि यदि बीच में फिर कुछ Footnote जोड़ना होगा, तो संख्या बदल जाने की चिन्ता आपको नहीं करनी होगी। कम्प्यूटर खुद आगे की संख्या परिवर्तित कर लेगा।
सन्दर्भ का आदर्श रूप
- किसी आलेख का सन्दर्भ देते समय
- लेखक का नाम- उपाधि पहले रखें। जैसे- चतुर्वेदी, सीताराम
- आलेख प्रकाशन का वर्ष,
- आलेख का शीर्षक,
- आलेख जिस संकलन अथवा पत्रिका में प्रकाशित है, उसका नाम, (वोल्ड में)
- पत्रिका की अंक संख्या
- पत्रिका प्रकाशक का नाम,
- पत्रिका प्रकाशन का स्थान
- संगत पृष्ठ संख्या
उदाहरण- 1. शंभू कुमार (डा.), 2013ई., प्राच्य-विद्या के विकास में महाराजाधिराज डा. कामेश्वर सिंह का योगदान, शास्त्रार्थ (शोधपत्रिका), Vol. XVI, अंक- 8, मिथिला शोध संस्थान, दरभंगा, पृ. 190-94.
- पुस्तक से सन्दर्भ देने की स्थिति में
- पुस्तक के लेखक का नाम
- पुस्तक प्रकाशन का वर्ष
- पुस्तक का नाम, (वोल्ड में)
- पुस्तक के प्रकाशन का स्थान
- पुस्तक का प्रकाशक का नाम
- संगत पृष्ठ संख्या
उदाहरण : 1. झा, शशिनाथ (डा.), 2009, निबन्धमंदारमञ्जरी, दीप (मधुबनी), तीर्थनाथ पुस्तकालय, पृ.147-158.
- भारतीय आर्ष-ग्रन्थ का सन्दर्भ
- ग्रन्थ का नाम (वोल्ड में)
- ग्रन्थ के अवान्तर विभाजन की संख्या
- अवान्तर विभाजन में श्लोक अथवा सूत्र संख्या
- सम्पादक का नाम
- प्रकाशन वर्ष
- प्रकाशन का स्थान
- प्रकाशक/मुद्रक का नाम
- संगत पृष्ठ संख्या
उदाहरण : 1. अगस्त्य-संहिता, 5.44- अहिंसा परमो धर्मः। पं. भवनाथ झा(सम्पादक), 2009ई. पटना, महावीर मन्दिर प्रकाशन, पृ. 27.
- पाण्डुलिपि से सन्दर्भ
- ग्रन्थ का नाम
- रचयिता का नाम
- जहाँ पाण्डुलिपि संरक्षित है, उस संस्थान का नाम एवं पता अथवा जिस वेबसाइट पर वह पाण्डुलिपि है, उसका और वह तिथि जिस दिन आपने उसे देखा।
- पाण्डुलिपि संख्या अथवा पुस्तकालय की परिग्रहण संख्या
- संगत पत्र संख्या
- संगत पृष्ठ संख्या
- संगत पंक्ति संख्या
उदाहरण- जगज्जीवनचरित, चतुर्भुज दास, http://indianmanuscripts.com/, Sanchipt Ramayan, MRE0298, पत्र-संख्या-f.1R, पंक्ति संख्या- 2-4- “गलतायां बभूवैको वैष्णवोतीव भक्तिमान्।”
(टिप्पणी. पाण्डुलिपि में एक पत्र में दो पृष्ठ होते हैं। संख्या दूसरे पृष्ठ पर लिखी जाती है। एक पत्र के प्रथम पृष्ठ को Recto कहते हैं तथा उसे उलटने पर पीछे के पृष्ठ को Verso कहते हैं। दोनों को Folio कहते हैं, जिसकी संख्या लिखी होती है। इसे पत्र संख्या देकर (क) एवं (ख) भी लिख सकते हैं।
- वेबसाइट का सन्दर्भ
- वेबसाइट का URL
- जिस तिथि को आपने देखा।
उदाहरण 1. https://brahmipublication.com/rama-ka-rajyabhishek/ (दिनांक 06-03-2021 ई. को देखा गया।)
टिप्पणी- विद्वानों से निवेदन है कि उपर्युक्त तथ्यों में यदि सुधार की अपेक्षा समझते हों तो हमें लिखेंं।
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक