रामावत संगत में दीक्षा-विधि

रामावत संगत

जात-पाँत पूछे नहीं कोय, हरि को भजे सो हरि को होय।
"जय सियाराम, जय हनुमान, संकटमोचन कृपानिधान ।।

नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय देव्यै च तस्यै जनकात्मजायै।
नमोऽस्तु रुद्रेन्द्रयमानिलेभ्यो नमोऽस्तु चन्द्रार्कमरुद्गणेभ्यः॥ (वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड, 13.59)

1. महावीर मन्दिर की ओर से रामावत संगत की स्थापना की जा रही है। रामावत संगत युग-प्रर्वतक सन्त रामानन्दाचार्य के सिद्धान्तों का अनुसरण सामान्यतः करेगी। रामानन्दाचार्य द्वारा स्थापित सम्प्रदाय का नाम है रामावत सम्प्रदाय और इस समुदाय के भक्त दो प्रकार के हैं- साधु एवं गृहस्थ। साधु बैरागी कहलाते हैं और आज भारत में ऐसे विरक्त सन्तों की संख्या सर्वाधिक होगी। उनके अपने नियम एवं अनुशासन हैं। रामावत संगत उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखेगी तथा उनके नियम एवं अनुशासन में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

2. यह रामावत संगत गृहस्थों के लिए है। इसका मूल सिद्धान्त होगा ‘‘जात-पाँत पूछ नहीं कोय। हरि को भजै सो हरि को होय'' रामानन्दाचार्य द्वारा विरचित 'वैष्णव-मताब्ज़-भास्कर' में निरूपित सिद्धान्तों के यथासाध्य अनुसरण का प्रयास संगत करेगी। यह ग्रन्थ पिछली सहस्राब्दी में संस्कृत में विरचित सबसे बड़ा क्रान्तिकारी ग्रन्थ है।

सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणः सदा शक्ता अशक्ता पदयोर्जगत्प्रभोः।
अपेक्ष्यते तत्र कुलं बलं च नो न चापि कालो न च शुद्धतापि॥ (वैष्णवमताब्जभास्कर-4:42)

अर्थात् सबलोग ईश्वर के चरणों में शरणागति के सदैव अधिकारी हैं, चाहे वे सबल या निर्बल हों। इसके लिए न तो कुल की, न बल की, न काल की और न ही शुद्धता की अपेक्षा है। महर्षि वाल्मीकि सामाजिक समता का इससे अधिक बुलन्द उद्घोष किसी अन्य धर्माचार्य ने नहीं किया। अतः रामावत संगत में भी सामाजिक समता पर सर्वाधिक बल दिया जायेगा।

3. इस रामावत संगत में यद्यपि सभी प्रमुख देवताओं की पूजा होगी; किन्तु ध्येय देव के रूप में सीताजी, रामजी एवं हनुमानजी होंगे। हनुमानजी को रुद्रावतार मानने के कारण शिव, पार्वती और गणेश की भी पूजा श्रद्धापूर्वक की जायेगी। राम विष्णु भगवान् के अवतार हैं; अत: विष्णु भगवान् और उनके सभी अवतारों के प्रति अतिशय श्रद्धाभाव रखते हुए उनकी भी पूजा होगी। श्रीराम सूर्यवंशी हैं; अतः सूर्य की भी पूजा पूरी श्रद्धा के साथ होगी।

4. इस रामावत-संगत में वेद, उपनिषद् से लेकर भागवत एवं अन्य पुराणों का नियमित अनुशीलन होगा; किन्तु गेय ग्रन्थ के रूप में रामायण (वाल्मीकि, अध्यात्म एवं रामचरितमानस) एवं गीता को सर्वोपरि स्थान मिलेगा। ‘जय सियाराम जय हनुमान, संकटमोचन कृपानिधान' प्रमुख गेय पद होगा।

5. ऋषियों-मुनियों एवं साधु-सन्तों में सबके प्रति समान सम्मान का भाव रखते हुए महर्षि वाल्मीकि, रामानन्दाचार्य, उनके शिष्य सन्त कबीरदास एवं सन्त रैदास तथा गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य का विशेष रूप से पठन-पाठन किया जायेगा।

6. ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के मार्गों में आस्था रखते हुए रामावत संगत भक्ति की भागीरथी सर्वत्र प्रवाहित करने की चेष्टा करेगी। भगवान् श्रीराम की वाणी- ‘मानहुँ एक भगति के नाता' एवं श्रीकृष्ण के उपदेश - ‘न मे भक्तः प्रणश्यति' के सिद्धान्त को घर-घर में प्रचारित करने का प्रयास किया जायेगा। यह पन्थ भगवान् और भक्त के बीच की दीवार को दूर करने की चेष्टा करेगा।

7. रामावत संगत का दर्शन होगा प्रपत्तिवाद। भगवान् की शरणागति को प्रपत्ति कहते हैं। प्रपत्तिवाद का अर्थ है- भगवान् की शरण में जाने से मंगल होने की अटूट आस्था। भगवान् श्रीराम ने वाल्मीकि-रामायण में कहा है

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥ (वा.रा. : 6.18.33)

8. परम्परागत धर्माचार्यों के प्रति पूरी प्रतिष्ठा प्रदर्शित करते हुए यह सम्प्रदाय नकली बाबाओं के पाखण्ड एवं परिग्रह का विरोध करेगा। उनके परोपदेश के पीछे पापाचरण को प्रदर्शित करते हुए उनसे सावधान एवं दूर रहने का आह्वान इस रामावत संगत द्वारा किया जायेगा।

9. रामावत संगत का प्रचार-प्रसार गाँव-शहर सर्वत्र किया जायेगा। इस संगत के सदस्यों के लिए सप्ताह में एक दिन गाँव-कस्बे के किसी मन्दिर में बिना भेदभाव के सामूहिक रूप से जुटकर मन्दिर में स्थापित देवता की आराधना तथा अर्चन करना, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड का पाठ करना होगा। बड़े शहर में रहनेवाले सदस्य महीने में कम-से-कम एक बार इसमें अवश्य शामिल होगें। साल में रामनवमी, जन्माष्टमी, शिवरात्रि एवं किसी मुख्य पर्व पर गाँव या कस्बे के सभी लोग बिना भेदभाव के एक पंक्ति में बैठकर साथ भोजन करेंगे। सप्ताह में या महीने में एक दिन संगत एवं वर्ष में एक दिन पंगत का आयोजन किया जायेगा। समाज के गरीब एवं उपेक्षित वर्गों को विशेष रूप से जोड़ने का अभियान चलाया जायेगा। समाज में व्याप्त जात-पाँत, छुआछूत के कोढ़ के उन्मूलन में हर सदस्य सक्रिय भूमिका निभायेगा।

10. इस संगत के सदस्यों के लिए मांसाहार, मद्यपान, परस्त्रीगमन एवं परद्रव्यहरण का निषेध रहेगा। सदस्य न किसी से रिश्वत लेंगे और न किसी को रिश्वत देंगे। हर सदस्य अपने एवं परिवार से ऊपर उठकर समाज एवं राष्ट्र के हित में कार्य करेगा। देशभक्ति रामावत संगत की अटूट शक्ति होगी।

11. 'परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्' के आर्ष-वाक्य का पालन करते हुए हर सदस्य परोपकार को प्रवृत्त होगा एवं परपीड़न से बचेगा। हर दिन कम-से-कम एक नेक कार्य करने का प्रयास हर सदस्य करेगा। आज धर्म को परोपकार से जोड़ना युगधर्म है। इसकी उपेक्षा से धर्म का उपहास ध्वनित होगा।

12. भगवान् को तुलसी या वैजयन्ती की माला बहुत प्रिय है अतः भक्तों को इसे धारण करना चाहिए। विकल्प में रुद्राक्ष की माला का भी धारण किया जा सकता है। ऊर्ध्वपुण्डू या ललाट पर सिन्दूरी लाल टीका (गोलाकार में) करना चाहिए। स्त्रियाँ मंगलसूत्र जैसे मांगलिक हार पहनेंगी; किन्तु स्त्री या पुरुष अनावश्यक आडम्बर या धन का प्रदर्शन आभूषणों से नहीं करेंगे।

13. स्त्री या पुरुष एक दूसरे से मिलते समय राम-राम, सीताराम, हरि ॐ जैसे शब्दों से सम्बोध करेंगे और हाथ मिलाने की जगह करबद्ध रूप से प्रणाम करेंगें।।

14. रामावत संगत में मन्त्र-दीक्षा की अनूठी परम्परा होगी। जिस भक्त को जिस देवता के मन्त्र से दीक्षित होना है, उस देवता के कुछ मन्त्र समान रूप से लिखकर रखे जायेंगे। रात्रि में आरती के बाद भक्त द्वारा गीता के निम्नलिखित श्लोक द्वारा उसका संकल्प कराया जायेगा

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छेयः स्यानिश्चितं ब्रूहि तन्मे ।
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्॥ (2.7)

“हे भगवन्, मेरे मन में ऐसी किंकर्तव्यविमूढ़ता समा गयी है कि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए। इसलिए ठीक ठीक सोच-विचारकर आप ही मुझे समझा दीजिए कि इस दुबिधा में क्या क्रान्तदर्शी कबीर करने से मेरा उपकार होगा; आप ही मुझे उपदेश करें; क्योंकि मैं आपका शिष्य होकर आपकी शरण में आ पहुँचा हूँ।”

प्रात:कालीन आरती के बाद उस भक्त से मन्त्र लिखे पुर्षों में से कोई एक पुर्जा निकालने के लिए कहा जायेगा। भक्त जो पुर्जा निकालेगा, वही उस भक्त का मन्त्र होगा। मन्दिर के पण्डित उस मन्त्र का अर्थ और प्रसंग बतला देंगे, बाद में उसके जप की विधि भी। वही उसकी मन्त्र-दीक्षा होगी। इस विधि में हनुमानजी परम-गुरु होंगे और वह मन्त्र उन्हीं के द्वारा प्रदत्त माना जायेगा। भक्त और भगवान् के बीच कोई अन्य नहीं होगा।

15. महावीर मन्दिर के लाखों भक्त है; किन्तु उनकी विशद जानकारी महावीर मन्दिर को नहीं है और न ही उन भक्तों का सीधा संवाद या सम्पर्क महावीर मन्दिर से है। रामावत संगत की स्थापना से यह खाई मिटेगी। महावीर मन्दिर के सन्देश-वाहक के रूप में रामावत संगत द्वारा दायित्व निभाया जायेगा तथा महावीर मन्दिर की योजनाओं को मूर्त रूप देने में भी संगत की सक्रिय भूमिका होगी। महावीर मन्दिर न्यास के तत्वावधान में निर्माणाधीन विश्व का विशालतम मन्दिर- विराट् रामायण मन्दिर के निर्माण में भी संगत का बहुमूल्य योगदान होगा।

15. महावीर मन्दिर के लाखों भक्त है; किन्तु उनकी विशद जानकारी महावीर मन्दिर को नहीं है और न ही उन भक्तों का सीधा संवाद या सम्पर्क महावीर मन्दिर से है। रामावत संगत की स्थापना से यह खाई मिटेगी। महावीर मन्दिर के सन्देश-वाहक के रूप में रामावत संगत द्वारा दायित्व निभाया जायेगा तथा महावीर मन्दिर की योजनाओं को मूर्त रूप देने में भी संगत की सक्रिय भूमिका होगी। महावीर मन्दिर न्यास के तत्वावधान में निर्माणाधीन विश्व का विशालतम मन्दिर- विराट् रामायण मन्दिर के निर्माण में भी संगत का बहुमूल्य योगदान होगा।

16. रामावत संगत के सदस्य संसार के सबसे विशाल मन्दिर- विराट् रामायण मन्दिर के निर्माण में सक्रिय सहयोग करेंगे। मन्दिर या इसके अस्पतालों के निर्माण में धन-कुबेरों से नगण्य सहयोग मिला है। निम्न या मध्यम आयवर्ग के भक्तों की सहायता से ही महावीर-मन्दिर न्यास इतना परोपकारी कार्य कर सका है। महावीर मन्दिर के निर्माण में लाखों भक्तों ने कार सेवा की थी और मन्दिर निर्माण में अपनी साझीदारी समझी थी। उसी प्रकार विश्व के विशालतम देवालय के निर्माण में भी महावीर मन्दिर लाखों भक्तों को जोड़ना चाहता है। इस विशालतम मन्दिर के निर्माण के लिए भक्तों से अनुरोध है कि 7 हजार रुपये प्रति वर्गफुट के हिसाब से भक्त कुछ वर्गफुट निर्माण का योगदान करे। कोई एक वर्गफुट, कोई तीन, कोई पाँच कोई दस, कोई पन्द्रह, कोई बीस, कोई पचास, कोई सौ और कोई हजार। जो व्यक्ति जितने वर्गफुट का योगदान करेगा, उसे उक्त योगदान के लिये मन्दिर न्यास की ओर से एक सुन्दर प्रमाण-पत्र दिया जायेगा जिसपर विराट् रामायण मन्दिर का चित्र और उसके योगदान का उल्लेख होगा। वह उसे अपने घर या संचिका में रखकर अपने मित्रों, रिश्तेदारों एवं दूसरों को गर्व से दिखला सकेगा। पन्द्रह वर्गफुट से अधिक योगदान करनेवालों के नाम मन्दिर प्रांगण में निर्मित धर्मस्तम्भ पर लिखे जायेंगे। इससे अधिक का योगदान करनेवालों के लिए उत्तरोत्तर अधिक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर नाम उत्कीर्ण किये जायेंगे।

17. विराट् रामायण मन्दिर के निर्माण में भक्तों का योगदान पारदर्शी बनाने के लिए बैंक के पर्यवेक्षण में सिक्यूरिटी-प्रेस से महावीर मन्दिर न्यास ने कूपन छपवाया है जो बैंक की अभिरक्षा में रहेगा। बैंक से मन्दिर-न्यास इस कूपन को खरीदने के बाद उसका विक्रय करेगा और प्राप्त राशि को बैंक में जमा करेगा। भक्त स्वतः भी अपनी सहयोग-राशि बैंक में विराट् रामायण मन्दिर के खाते में जमा कर सकते हैं। राशि जमा करने या कूपन खरीदने के बाद प्रमाण-पत्र लेना न भूलें। यह धरोहर के रूप में रहेगा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक वंशजों को परोपकार के लिए प्रेरित करेगा।

18. रामावत संगत की सदस्यता के लिए सामान्य शुल्क मात्र । 101/- रु० है और गरीबों के लिए यह लोकनायक तुलसीदास मात्र 51/- रु० है। सदस्य बनने के लिए एक मुद्रित पत्र पर भी कुछ विवरणियाँ भरनी होंगी।

इस रामावत संगत की स्थापना के अवसर पर दिनांक 11 अक्टूबर, 2014 को पाँच सौ वर्षों के बाद रामानन्दाचार्य एवं उनके शिष्य सन्त कबीर, सन्त रविदास, भक्त सेन, भक्त धन्ना जाट आदि द्वारा स्थापित सभी पीठों के आचार्य उपस्थित होकर रामानन्दाचार्यजी के समतामूलक सिद्धान्तों के आधार पर समाज के सुदृढ़ करने का प्रयास करेंगे। रामानन्दीय विद्वान् विरक्त महात्मा अनन्तदासजी के शब्दों में :

दास अनन्त भगति करै, जाति पांति कुल षोइ।
ऊंच-नीच हरि नां गिनै, भगति कीयां बसि होई॥

रामावत-संगत का सदस्य बनकर इसके सिद्धान्तों का पालन अपनी दिनचर्या में करें तथा अपने पड़ोस, गाँव, समाज में इसका प्रचार-प्रसार कीर्तन, भजन, प्रवचन एवं अपने आदर्श जीवन-यापन से करें। साथ में, विराट् रामायण मन्दिर की गौरवगाथा का बखान भी सर्वत्र करें कि महावीर मन्दिर न्यास के तत्त्वावधान में निर्माणाधीन यह मन्दिर लम्बाई (2600 फीट), चौड़ाई (1400 फीट) और ऊँचाई (379 फीट) में संसार का सबसे विशाल मन्दिर बनेगा। इस मन्दिर में 72 फीट की ऊँचाई पर 20 हजार भक्त एक साथ सीताजी, लव-कुश एवं वाल्मीकि का दर्शन, पूजन, अर्चन कर सकते हैं। ऐसी भव्यता है इस विराट् मन्दिर की, जिसका निर्माण मन्दराचल की तरह भारी है और यह अमित व्यय-साध्य तथा श्रम-साध्य है। इसे प्रारम्भ करने में पहले ‘बाल मराल कि मन्दर लेही सोचकर डर लगता था; किन्तु रघुनाथजी सर्वसमर्थ हैं, यह समझकर इस कार्य को प्रारम्भ किया गया है

गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥

महावीर मन्दिर की ओर से
न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल द्वारा प्रसारित