निम्नलिखित देव-अर्पण के लिए यजमान की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। वे बाहर रहते हुए भी शुल्क जमाकर इनके लिए बुकिंग करा सकते हैं। उनका नाम मन्दिर में हनुमानजी के सामने रखे गये बोर्ड पर अंकित रहेगा।
मन्दिर में प्रतिदिन मध्याह्न आरती एवं सन्ध्या आरती से पहले सभी देवताओं को अन्न-भोग अर्पित किया जाता है। भक्तों द्वारा जमा किये गये शुल्क से इसकी व्यवस्था की जाती है तथा स्थानीय भक्त इसका प्रसाद ग्रहण करते हैं।
मुख्य देवता हनुमान् के गर्भगृह में घी का अखण्ड दीप जलता है। जो भक्त इसके लिए शुल्क जमा करते हैं उनके नाम से संकल्प लेकर इसी दीप में घी डाला जाता है।
हनुमान् की प्रतिमा पर प्रतिदिन सिन्दूर-लेपन का विधान है। जो भक्त इसके लिए शुल्क जमा करते हैं उनके नाम से संकल्प कर यह सिन्दूर-श्रृंगार किया जाता है।
भक्तों द्वारा जमा किए गये शुल्क से मन्दिर में साधुओं के लिए दो समय भोजन की नियमित व्यवस्था है लगभग २०० साधु-संन्यासी, महात्मा प्रतिदिन भोजन करते हैं।
भक्तों द्वारा दिये गये धन से मन्दिर द्वारा एकबार अपराह्ण 2 बजे जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। स्थानीय श्रद्धालु उस समय आकर अपने हाथों भी भोजन परोस कर खिलाते हैं।
सभी दाताओं के नाम मन्दिर में रखे गये दैनिक बोर्ड पर लिखे जाते हैं।
वैदिक कर्मकाण्डों के लिए पहले से शुल्क जमाकर समय एवं दिन निश्चित कर लिया जाता है। इसी शुल्क में पुरोहित की दक्षिणा भी सम्मिलित है। पूजा करानेवाले को अपने साथ कुछ भी लाने की आवश्यकता नहीं है। पूजा के दिन यजमान की सदेह उपस्थिति अनिवार्य है। यदि यजमान स्वयं उपस्थित होने में असमर्थ हैं तो उनके निकटतम रक्त संबंधी (पति, पत्नी, माता, पिता, सोदर भाई, बहन आदि) आकर पूजा संपन्न कर सकते हैं।
खोयी हुई वस्तु पाने के लिए, शत्रु के प्रकोप से बचने के लिए, मंगल एवं शनि ग्रह की शान्ति के लिए, कलह से मुक्ति, सुख-शान्ति एवं समृद्धि के लिए महावीर हनुमान् की उपासना सदियों से की जाती रही है। यह पूजा लगभग ३ घंटे तक चलती है। पूजन के अन्त में हवन भी होता है।
रोग, मृत्युभय, बाधा, चिन्ता, कालसर्प योग, दुष्ट ग्रह आदि से छुटकारा पाने के लिए तथा पारिवारिक सुख शान्ति, समृद्धि, स्वास्थ्य आदि लाभ के लिए भगवान् शिव का अभिषेक सबसे प्रसिद्ध कर्मकाण्ड माना जाता है। स्थापित शिवलिंग पर अभिषेक में शिववास का भी विचार नहीं होता है। शिव की पूजा के लिए शिववास का विचार उस स्थिति में किया जाता है, जब मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा करनी हो। किन्तु मन्दिर में स्थापित प्रस्तर शिवलिंग पर किसी भी दिन रुद्राभिषेक कराया जा सकता है। महावीर मन्दिर में भक्तों द्वारा जमा किए गये शुल्क से ३ लीटर दूध एवं भोग की विशेष व्यवस्था की जाती है। पूजन की अन्य सामग्री तथा पुरोहित की दक्षिणा भी इसी में सम्मिलित है। यजमान को कुछ भी लाने की आवश्यकता नहीं है।
भगवान् श्रीराम एवं जगज्जननी की उपासना महावीर मन्दिर में जगद्गुरु रामानन्दाचार्य की लिखी हुई पद्धति से करायी जाती है। इसमें मन्दिर की ओर से नैवेद्यम् प्रसाद की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त प्रसाद यजमान स्वयं ला सकते हैं।
भगवान् सत्यनारायण की कथा घर घर में होती रही है। महावीर मन्दिर में इस पूजा के लिए विशेष व्यवस्था की गयी है। इसमें लगभग २ घंटा समय लगता है। यहाँ भविष्य-पुराण में उपलब्ध सत्यनारायण की विशिष्ट पूजा की व्यवस्था की गयी है। (विशेष अध्ययन)
जन्मदिन के अवसर पर आयु-वृद्धि तथा अगले वर्ष में सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए देवताओं की पूजा तथा हवन का विधान शास्त्रों में किया गया है। महावीर मन्दिर की ओर से इसकी व्यवस्था की गयी है। इसे वर्षवृद्धि या वर्द्धापन भी कहा जाता है।
किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में या गोचर में स्थित बुरे ग्रह की शान्ति के लिए उस ग्रह की विशेष पूजा की व्यवस्था की गयी है। इस पूजा में सभी ग्रहों की पूजा कर विशेष रूप से दुष्ट ग्रह की विशेष पूजा तथा हवन किया जाता है। इसमें भी लगभग 1 घंटा समय लगता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार दुष्ट ग्रह, पूर्व जन्म या इस जन्म में किया गया जाना या अनजाना कोई पाप रोग उत्पन्न करते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए भगवान् सूर्य एवं भगवान् शिव की आराधना सबसे उत्तम है। मन्दिर में इसके लिए व्यवस्था की गयी है। इस पूजा में भी लगभग २ घंटा समय लगता है।
इसके अतिरिक्त यजमान अपनी इच्छानुसार विशेष परिस्थिति के लिेए ग्रहों, देवताओं तथा विभिन्न वैदिक मार्ग द्वारा अनुमोदित हवन करा सकते हैं।
भगवान् गणेश विघ्न नाश करनेवाले तथा हर तरह से सुमंगल करनेवाले देवता हैं। विद्या की प्राप्ति, प्रारम्भ किए गये कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए इनकी पूजा प्राचीन काल से की जाती है। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण का गणपति-खण्ड इनकी उपासना के लिए प्रसिद्ध है। इसी गणपति-खण्ड के आधार पर महावीर मन्दिर में पूजा-पद्धति तैयार की गयी है। इस पूजन में लगभग ३ घंटा समय लगता है।
महाभारत के अन्तर्गत हरिवंश में विशेष रूप से सन्तान-प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण की पूजा का विधान किया है। मन्दिर में इस पूजा की व्यवस्था की गयी है।
बहुतों की मन्नतें रहती है कि वे मन्दिर में बच्चे का मुण्डन-संस्कार कराये। महावीर मन्दिर में भी निर्धारित शुल्क जमा कर तुलसी-मण्डप के पीछे बच्चे का मुण्डन करा सकते हैं। इसके लिए नाई, पुरोहित आदि की व्यवस्था स्वयं करनी होगी। बाजा बजाने से अन्य श्रद्धालुओं को असुविधा होती है, अतः इस पर रोक लगा दिया गया है।
नई खरीदी गयी गाड़ियों के लिए तथा विश्वकर्मा-पूजा (१७ सितम्बर) के दिन पुरानी गाडियों के लिए भी वाहन-पूजा की व्यवस्था है। इसमें फूल-माला एवं प्रसाद खरीदकर यजमान स्वयं हनुमानजी का भोग लगाते हैं तथा मन्दिर की ओर से निर्धारित पुजारी वाहन-पूजा कर सुन्दर भविष्य की शुभकामना करते हैं।
रोग, विघ्न-बाधा, मृत्यु की आशंका आदि के लिए मृत्यु को भी जीतने वाले महामन्त्र का जप प्राचीन काल से होता रहा है। वैदिक महामृत्युंजय मन्त्र इस प्रकार है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
ऊर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्॥
यही मूल मन्त्र है। इस मन्त्र का १ लाख २५ हजार जप करने या कराने का विधान है।
महावीर मन्दिर में योग्य साधक एवं पण्डित द्वारा यह जप कराने की व्यवस्था की गयी है। इसमें शुल्क जमा करने पर संकल्प लेने की तिथि निर्धारित की जाती है तथा उस दिन यजमान को स्वयं या अन्य किसी निकटतम व्यक्ति आकर संकल्प करते हैं और उसी दिन से जप आरम्भ हो जाता है। प्रत्येक १०,००० जप सम्पन्न होने पर उसका दशांश, १,००० मन्त्र से हवन होता है। इस हवन में यजमान अथवा किसी प्रतिनिधि की उपस्थिति अनिवार्य है।
शुल्क जमा करने की न्यूनतम ईकाई 2,761.00 रुपया है जिसमें १०,००० जप एवं १,००० हवन, कुल ११,००० जप-संख्या सम्मिलित है।
नौ ग्रहों के लिए वैदिक मन्त्रों के जप का विधान शास्त्रों में किया गया है। जन्म-कुण्डली या हस्तरेखा देखने पर ज्योतिषी यह निर्धारित करते हैं कि किस व्यक्ति को किस ग्रह का मन्त्र कितनी संख्या में जप कराना चाहिए। इस जप के लिए भी मन्दिर में महामृत्युंजय जप की तरह व्यवस्था है। नोट - ग्रहों के तान्त्रिक मन्त्र के जप के लिए यहाँ कोई व्यवस्था नहीं है।
हरिवंश पुराण के अन्तर्गत १०० श्लोकों का सन्तान गोपाल स्तोत्र प्रसिद्ध है। इस स्तोत्र का पाठ एवं पुरश्चरण सन्तान-प्राप्ति एवं सन्तान की रक्षा के लिए प्राचीन काल से होता रहा है।
खोये हुए व्यक्ति या किसी वस्तु को पुनः पाने के लिए सुन्दरकाण्ड का पाठ होता रहा है। इससे हनुमानजी की आराधना की जाती है।
वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में ६८ अध्याय हैं। इसके पाठ का कई प्रकार से पुरश्चरण होता है। महावीर मन्दिर में तीन दिन एवं सात दिन के दो प्रकार से पाठ होता है। इसमें हवन नहीं होता है।
देवी की उपासना में यह पाठ सबसे प्रसिद्ध है। इस पाठ के अन्तर्गत अर्गला, कील, कवच, शापोद्धार, शतनाम, मूल १३ अध्याय एवं अन्त में ऋग्वेद के देवी-सूक्त का पाठ होता है। इसमें लगभग ढाई घंटा का समय लगता है। (विशेष अध्ययन)
श्रीदुर्गासप्तशती में सात सौ मन्त्र हैं। इनमें से कुछ मन्त्र सम्पुट पाठ के लिए प्रसिद्ध हैं। विभिन्न कामनाओं की सिद्धि के लिए विभिन्न बीज मन्त्रों का विधान किया गया है। सम्पुट पाठ में १३ अध्याय के सात सौ मन्त्रों में प्रत्येक मन्त्र के आगे-पीछे बीजमन्त्र जोड़कर पाठ किया जाता है। इस प्रकार एक सामान्य पाठ से तीन गुना समय इस सम्पुट पाठ में लगता है। यह पाठ विशेष फलदायी माना गया है। (विशेष अध्ययन)