महावीर मन्दिर में मनायी गयी देवोत्थान एकादशी
प्रेस रिलीज
महावीर मन्दिर में मनायी गयी देवोत्थान एकादशी
आज दिनांक 25 नवम्बर, 2020 को अन्य वर्षों की भाँति देवोत्थान एकादशी का पर्व मनाया गया। सन्ध्या 6 बजे में मन्दिर के पूर्व-दक्षिण कोण पर स्थित विष्णु भगवान् के सामने में यह पूजा सम्पन्न हुई। इस वार्षिक पूजा में पं. भवनाथ झा, प. श्री जटेश झा, पं. श्री रामदेव पाण्डेय सहित अनेक व्रतियों ने भाग लिया। इस अवसर पर आचार्य किशोर कुणाल भी उपस्थित थे।
विष्णु जागरण का यह दिन है-
कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान एकादशी या हरिबोधिनी या प्रबोधिनी एकादशी मनायी जाती है। मान्यताके अनुसार आषाढ शुक्ल एकादशी को हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शयन हेतु चले जाते हैं। भाद्र शुक्ल एकादशी के दिन पार्श्वपरिवर्तनी एकादशी होती है। इस बीच के चार मास को चातुर्मास्य कहा जाता है। प्राचीन काल में चातुर्मास्य के इन दिनों में यात्रा करना निषिद्ध माना जाता था।
इसी चातुर्मास्य का अन्त कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन होता है। इस दिन तुलसी के वृक्ष के समीप लक्ष्मी के साथ भगवान् विष्णु की पूजा सन्ध्याकाल में की जाती है। इस पूजा में नैवेद्य के रूप में अथवा किसी भी प्रकार से अन्न का व्यवहार नहीं होता है, केवल फल-मूल-कन्द अर्पित किया जाता है। यहाँ तक कि भगवान् को तिल भी इस पूजा में अर्पित नहीं किया जाता है।
पूजा के बाद पूजा के सहित पूरी चौकी अथवा पीढा को व्रत करनेवाले लोग मिलकर निम्नलिखित मन्त्र को पढते हुए तीन बार उठाते हैं।
देवोत्थान एकादशी मन्त्र
ॐ ब्रह्मेन्द्ररुद्रैरभिवन्द्यमानो भवानृषिर्वन्दितवन्दनीय:।
प्राप्ता तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ ॥
मेघा गता निर्मलपूर्णचन्द्रशारद्यपुष्पाणि मनोहराणि ।
अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ ॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वया चोत्थीयमानेन प्रोत्थितं भुवनत्रयम्॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
पूजा के बाद अपनी अपनी स्थानीय परम्परा के अनुसार लोग भजन-गायन-कीर्तन आदि करते हुए रात्रि जागरण करते हैं और प्रातःकाल नित्यकर्म कर तुलसीदल से पारणा करते हैं। कुछ लोग नक्तव्रत करते हैं। वे पूजा के बाद रात्रिमे ही एक बार भगवान् को अर्पित नैवेद्य ग्रहण कर लेते हैं।
इसके अगले दिन अर्थात् द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन भी भारत के अनेक हिस्से में होता है
भवनाथ झा


