तिरुपति के 65 कारीगर हर दिन सुबह स्नान-ध्यान व पूजा के बाद शुद्धता व सात्विकता के साथ करते हैं लड्डू का निर्माण
नैवेद्यम के तिरुपति से पटना महावीर एक्जीक्यूटिव अफसर से बात हई, तो मंदिर तक पहुंचने की कहानी दिलचस्प वे कारीगरों को बिहार भेजने के लिए है। आचार्य किशोर कुणाल ने बताया तैयार हो गए। लेकिन, शर्त थी कि तीन कि बात 1993 की है। केंद्र में पीवी या छह महीने के लिए कारीगर जाएंगे नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे और वे और स्थानीय कारीगरों को सीखाकर उस समय अयोध्या सेल में ओएसडी वापस लौट जाएंगे। उस समय हालात थे। जब भी तिरुपति जाते तो नैवेद्यम कुछ ऐसे थे कि कोई भी बिहार आना लड्डू जरूर लाते। बहुत पसंद था नहीं चाहता था। किसी तरह समझाने उन्हें नैवेद्यम। उस समय भारत सरकार का असर हुआ कि 12 कारीगर आने में सूचना सचिव थे पीवीआरके को तैयार हुए। लेकिन, यहां आने के प्रसाद, आग्रह करने पर वे उनके साथ बाद उन्हें यहां का वातारण भा गया तिरूपति गए। वहां तिरुपति ट्रस्ट के और वे यहीं रह गए।
शुद्ध गाय का घी समेत देश-विदेश से मंगाई जाने वाली सामग्रियों के इस्तेमाल से तैयार होने वाला महावीर मंदिर का नैवेद्यम लड्डू जल्द ही गया और मुजफ्फरपुर में भी उपलब्ध होगा। गया में राधाकृष्ण मंदिर और मुजफ्फरपुर स्थित श्री राम जानकी
ठाकुरबाड़ी में नैवेद्यम की बिक्री शुरू करने की तैयारी है। घी समेत कई खाद्य सामग्रियों पर जीएसटी लगने के बाद महावीर मंदिर नैवेद्यम लड्डू के बिक्री का दायरा बढ़ाने की तैयारी में है। हालांकि महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल के अनुसार कोई मंदिर या व्यक्ति यहां से खरीदकर नैवेद्यम ले जा सकता है। सवामनी प्रसाद या 100 किलो से अधिक की खरीदारी पर कीमत में छूट भी दी जाएगी। गया और मुजफ्फरपुर के बाद आरा के पास सकड्डी में भी लड्डू उपलब्ध कराने की योजना है।
आस्ट्रेलिया की दाल, कश्मीर के केसर और केरल के काजू का होता है इस्तेमाल नैवेद्यम लड्डू की नकल की कई दुकानदारों ने कोशिश की पर वे सफल नहीं हो सके। इसकी सबसे बड़ी वजह से गुणवत्ता और निर्माण के दौरान बरती जाने वाली सात्विकता। सामग्रियों का इस्तेमाल भी प्रमुख है। महावीर मंदिर का नैवेद्यम कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के ब्रांड नंदिनी घी से तैयार किया जाता है। यह गाय का शुद्ध घी है। देसी गाय के दूध से बनी घी से तैयार होने वाले नैवेद्यम से पटना जंक्शन स्थित महावीर मदिर में पिछले 25 सालों से श्रद्धालु भगवान को भोग लगाते हैं। केरल से काजू और जम्मू-कश्मीर से केशर व यूपी से चीनी आता है। जबकि बेसन आस्ट्रेलिया से मंगाए जाने वाले चने की दाल से तैयार होता है। इसके अलावा निर्माण में शुद्धता के साथ सात्विकता का पूरा ख्याल रखा जाता है। नैवेद्यम विभाग के प्रमुख शेषाद्री ने बताया कि सभी कारीगर सुबह 4 बजे जग जाते हैं और नहाने के बाद पूजा करते हैं, तब नैवेद्यम बनाने का काम शुरू करते हैं।
अप्रैल से हर महीने एक लाख किलो से अधिक हो रही है बिक्री कोरोना काल से पहले महीने में कभी नैवेद्यम की बिक्री एक लाख किलो तक नहीं पहुंचा था। लेकिन, कोरोना काल के बाद जब से मंदिर खुला है बिक्री का आंकड़ा एक लाख किलो के पार पहुंच गया है। यानी हर महीने एक लाख किलो से अधिक बिक्री हो रही है। पहले मंगलवार को जितनी भीड़ होती थी उतनी भीड़ शनिवार और रविवार को होने लगी है। सामान्य रूप से मंदिर में मार्च, अप्रैल, मई एवं जून महीने में सबसे अधिक भीड़ रहती है। मंदिर में भक्तों की भीड़ की एक कसौटी नैवेद्यम की बिक्री भी है। तिरुपति के बालाजी मंदिर के बाद देश के किसी मंदिर में लड्ड की सबसे अधिक बिक्री महावीर मंदिर में होती है, वह भी एक केंद्र से। जब भक्तों की संख्या सबसे अधिक होती है और लड्ड की बिक्री सर्वाधिक होती है। नैवेद्यम की कीमत अभी 300 रुपए किलो है।
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Recruitment for the post of Doctors and other staff at Vishal Nath Aspatal, Konhara Ghat Hajipur.
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