“धर्मायण” का 102वाँ अंक- ‘खरमास विशेषांक’
खरमास को लेकर भ्रान्ति दूर करने का प्रयास
दिनांक 30 दिसम्बर, 2020 को होगा लोकार्पित
महावीर मन्दिर की पत्रिका “धर्मायण” का पौष मास के अंक का विमोचन अग्रहायण की पूर्णिमा दिनांक 30 दिसम्बर को सन्ध्या में किया जायेगा।
यह अंक खरमास विशेषांक के रूप में तैयार किया गया है जो वर्तमान में कोविड-19 के कारण केवल इ-पत्रिका के रूप में प्रकाशित है।
इस अंक में 8 आलेख खरमास पर केन्द्रित है। विद्वानों ने माना है कि जिसे ‘खरमास’ कहा जाता है, वह वास्तव में ‘खलमास’ है, जिसका अर्थ है- धान जमा करने महीना। इसी शब्द से ‘खलिहान’ धान जमा करने की जगह को कहते हैं।
विद्वानों ने शास्त्रों का प्रमाण देकर साबित किया है कि केवल विवाह, मुण्डन, उपनयन, घर बनाना ये चार कार्य इस मास में नहीं करना चाहिए।
इनके अतिरिक्त यह मास किसी प्रकार से बुरा मास नहीं है। चान्द्रमास सम्बन्धी कार्य अर्थात् पूजा-पाठ, दान-पुण्य, स्नान आदि जो भी हैं, वे सभी इस मास में बहुत शुभ होता है। केवल जिन कार्यों के लिए सौरमास का विधान किया गया है, वे कार्य नहीं होंगे।
इस अंक में झोला छाप ज्योतिषियों के द्वारा फैलायी गयी भ्रान्ति का खंडन किया गया है कि इस मास में सूर्य सात घोड़े को पानी पीने का समय देने हेतु घोड़ों की सवारी को छोड़कर गदहा पर चलने लगते हैं, जिसके कारण उनकी गति मंद हो जाती है, अतः इसे खरमास कहते हैं। ये अश्लील कहानियाँ ऐसे लोगों द्वारा गढ़ी गयीं हैं जो शास्त्र नहीं जानते हैं। इस सारी बातों का यहाँ खण्डन किया गया है।
इस अंक में इंडोलॉजी के फैलो विद्वान् डा. श्रीकृष्ण जुगनू ने खरमास की व्याख्या कृषिकार्य के सन्दर्भ में की है। डा. रामाधार शर्मा ने सूर्य और बृहस्पति के संयोग के कारण उत्पन्न स्थिति का विवरण ज्योतिष-शास्त्र की दृष्टि से दिया है। डा. लक्ष्मी कान्त विमल ने 14वीं शती के ग्रन्थ “कृत्यरत्नाकर” में वर्णित पौष मास के विधानों पर पूरा आलेख लिखा है। डा. श्रीनिवास सुदर्शन शाण्डिल्य ने ‘खरमास’ शब्द की व्याख्या कर इसमें पुष्य नक्षत्र के योग को महत्त्वपूर्ण माना है। पूस महीने में नवजात शिशुओं को चावल के बगिया से सेंका जाता है, यह एक लोक-परम्परा है- उत्तर बिहार (मिथिला) की इस लोक परम्परा पर लेखिका कुमुद सिंह का एक विवरणात्मक लेख भी संकलित किया गया है। इसी अंक में श्री राधा किशोर झा ने प्राचीन शास्त्रों के आधार पर गृहस्थ के कर्तव्यों का विवरण दिया है। आचार्य सीताराम चतुर्वेदी लिखित रामकथा के युद्धकाण्ड का अंतिम प्रसंग भी इस अंक का प्रमुख आकर्षण है। पत्रिका आमलोगों के लिए पढ़ने लायक है। इसे mahavirmandirpatna.org/dharmayan पर पढ़ा जा सकता है।
सूर्य धनु राशि में प्रवेश करने पर कठिन शीत होने के कारण इसे तीक्ष्ण या खर मास कहते हैं। शब्द कल्पद्रुम से-
खरम्, क्ली, (खाय अन्तरिन्द्रियाय खस्य वा तीव्रता- रूपगुणं रातीति । ख + रा + कः ।) तीव्रम् । तत्पर्य्यायः । तिग्मम् २ तीक्ष्णम् ३ ॥ इत्य- मरः । १ । ३ । ३५ ॥ (यथा, भागवते । ७ । ८ । २८ । “कृत्वाऽट्टहासं खरमुत् स्वनोल्वणं निमीलिताक्षं जगृहे महाजवः ॥” तद्वति त्रि । यथा, रघुवंशे । ८ । ९ । “न खरो न च भूयसा मृदुः पवमानः पृथिवीरुहानिव ॥”)
चैत्र को भी तो खरमास कहा जाता है। अतः शीत की तीक्ष्णता से सम्बन्ध नहीं।