Dr. Jitendra Kumar Singh Sanjay
डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’
सोनभद्र (उ. प्र.) की युवा पीढ़ी के सक्रिय और समर्थ साहित्यकार डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ का जन्म गुरुवार वसन्त पंचमी, 1 फ़रवरी, 1979 ई. को मातामह बाबू मृत्युञ्जयप्रताप सिंह के गृह-मन्दिर में हुआ। माता महीयसी प्रभा सिंह के वात्सल्यांचल में पले-बढ़े डॉ. जितेन्द्र को अनुशासन की शिक्षा पिता बाबू महेन्द्रबहादुर सिंह से प्राप्त हुई। पितामह राजर्षि बाबू रामप्रसाद सिंह आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में सक्रिय रहे हैं। आचार्य विनोबा भावे की अनुशंसा पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री बाबू सम्पूर्णानन्द जी ने राजर्षि बाबू रामप्रसाद सिंह को भूमि प्रबन्धन समिति का चेयरमैन बनाया था।
वस्तुतः गाँधीवादी एवं सर्वोदयी विचारधारा की पृष्ठभूमि डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ को विरासत में प्राप्त हुई। अगोरी-बड़हर राज्य से निर्गत ताल्लुक़ा देवगढ़ के चन्देल राजपरिवार में जन्मे डॉ. जितेन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा देवगढ़ की प्राथमिक पाठशाला से सम्पन्न हुई। गाँव के परिवेश से बाहर निकलकर घोरावल के राजकीय इण्टर कॉलेज से हाईस्कूल एवं शाहगंज के जंगबहादुर सिंह इण्टरमीडिएट कॉलेज से इण्टर की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन से डॉ. जितेन्द्र को नवोन्मेषिनी दृष्टि प्राप्त हुई। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से ‘पी.जी. डिप्लोमा-इन-रेडियो प्रसारण’ एवं अवध विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. (भाषाविज्ञान) की गुरुतर उपाधि अर्जित करने के पश्चात् डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ ने अपने लिए साहित्य-सृजन का दुरूह मार्ग चुना।
कविता लिखने की प्रेरणा माता महीयसी प्रभा सिंह एवं मातामह बाबू मृत्युञ्जयप्रताप सिंह से प्राप्त हुई। डॉ. जितेन्द्र ने 12 वर्ष की उम्र में ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था। द्वादश वर्ष की उम्र से प्रारम्भ हुई डॉ. जितेन्द्र की साहित्य-साधना आज अनेक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है।
डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ विश्व के सबसे कम उम्र के पहले ऐसे साहित्यकार हैं, जिनकी पुस्तक ‘कुण्डवासिनी’ पर मात्र 25 वर्ष की आयु में ही एम.ए. अन्तिम वर्ष की परीक्षा के लिए लघुशोधप्रबन्ध (Dissertation) लिखा गया है। डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ के लेखन की परिधि साहित्य, इतिहास, भाषाविज्ञान, काव्यशास्त्र एवं छन्दःशास्त्र तक फैली हुई है।
प्रकाशित रचनाएँ (मौलिक)
- कुण्डवासिनीस्तोत्र (1997 ई.),
- शिवद्वार (2002 ई.),
- कुण्डवासिनी (2004 ई.),
- साहित्यकार द्विवेदी दम्पति (2005 ई.),
- बघेलवंश के चार कवि-रत्न (2006 ई.),
- भारतीय भाषा साहित्य और छन्द की भूमिका (2012 ई.),
- राष्ट्रकवि डॉ. बृजेश सिंह और महाराणा प्रताप-साहित्य (2013 ई.),
- हिन्दी-कवि और काव्यालोचक : शास्त्रीय अवधारणा और व्यवहारिक स्वरूप (2013 ई.),
- पुष्कल (2014 ई.),
- प्रणम्य सोनभद्र (2014 ई.),
- प्रसन्न सोनभद्र (2014 ई.),
- सोनभद्र का समाज (2014 ई.),
- सोनभद्र का इतिहास (2015 ई.),
- डॉ. शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ : व्यक्ति और वाङ्मय (2016 ई.),
- शब्दार्थ का सौहित्य (2016 ई.),
- राजवंश के साहित्यकार (2017 ई.),
- चन्देल-चन्द्रोदय (2017 ई.),
- संस्कृति-शिला पर उत्कीर्ण ऋचाएँ (2018 ई.),
- ‘श्रीराम की अयोध्या’ (2019 ई.)
प्रकाशित रचनाएँ (मौलिक)
- कविराज पण्डित रमाशंकर पाण्डेय ‘विकल’ के भोजपुरी-गीतों का संचयन ‘सोनवाँ कऽ अँचरा’ (1999 ई.),
- गीतम् के पंच रत्न (2006 ई.),
- राष्ट्रकवि डॉ. बृजेश सिंह का रचना-संसार (2014 ई.),
- डॉ. शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ अभिनन्दन-ग्रन्थ : ‘सिन्ध से गोमती तक’ (2016 ई.),
- गीतर्षि प्रो. सुमेर सिंह ‘शैलेश’ की गीत-यात्रा के पाँच दशक पर केन्द्रित रचनात्मक विमर्श : ‘गीतों के स्वर्ण-कमल’ (2016 ई.),
- पण्डित दीनदयाल उपाध्याय : व्यक्ति और वाङ्मय (दो खण्ड : 2019 ई.) आदि
‘भारतीय छन्दशास्त्र का इतिहास‘ नामक शोध-परियोजना के लिए संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार की कनिष्ठ अध्येतावृत्ति सन् 2008 ई. में ही डॉ. जितेन्द्र को प्राप्त हो चुकी है। इस परियोजना में भारत की समस्त भाषाओं के समन्वय का मौलिक स्वरूप स्थापित किया गया है।
तमिऴ् भाषा एवं हिन्दी भाषा के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् प्रो. एम. शेषन् ने भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ की पुस्तक ‘भारतीय छन्दशास्त्र का इतिहास’ को Landmark (मील का पत्थर) निरूपित किया है।
भारतीय इतिहास की कालगणना, प्रखर राष्ट्रीयता एवं अपने रक्त की एक एक बूँद से भारत भूमि का अभिषेक करनेवाले क्षत्रियों के शौर्याख्यान, स्वातन्त्रचेता मेवाड़ के गौरव महाराणा प्रताप एवं तुलसी के राम का मौलिक समन्वय, भारतीय नरेशों की साहित्य-साधना जैसे विषयों को अपनी लेखनी से अमरत्व प्रदान करनेवाले डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ की दृष्टि अत्यन्त मौलिक है। साहित्य और इतिहास का ऐसा सुन्दर समन्वय प्रायः कम देखने को मिलता है।
सम्मान
- ‘जूनियर फ़ेलो अवार्ड’ (संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार : 2008 ई.),
- ‘आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय शिखर सम्मान’ (संस्कृति मन्त्रालय, छत्तीसगढ़ सरकार : 2009 ई.),
- ‘चिन्तामणिकवि सम्मान’ (पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी सृजनपीठ, छत्तीसगढ़ सरकार : 2010 ई.),
- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ (उत्तर प्रदेश सरकार) का ‘रामचन्द्र शुक्ल नामित पुरस्कार’ (2014 ई.),
- ‘हज़ारीप्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कार’ (2015 ई.),
- ‘आचार्य नरेन्द्रदेव नामित पुरस्कार’ (2016 ई.),
- राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ सरकार का ‘दीपाक्षर सम्मान’ (2017 ई.),
- महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर का ‘महाराणा कुम्भा पुरस्कार’ (2019 ई.),
- संस्कृति मन्त्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार का ‘नीरज पुरस्कार’ (2019 ई.),
- उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का ‘विविध साहित्य पुरस्कार’ (2019 ई.) आदि
डॉ. जितेन्द्र न केवल कवि, साहित्यकार, आलोचक, भाषाविद् एवं इतिहासकार हैं, अपितु सामाजिक सरोकार रखनेवाले सहृदय व्यक्ति भी हैं। डॉ. जितेन्द्र ने अपने गाँव देवगढ़ में ‘बाबू वेणीबहादुर सिंह स्मृति पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र’ की स्थापना भी की है। डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ प्रभाश्री ग्रामोदय सेवा आश्रम के द्वारा सोनभद्र के ग्रामीण एवं अशिक्षित जनों के कौशल विकास का कार्य भी सम्पादित कर रहे हैं। निश्चय ही डॉ. जितेन्द्र ने अपने उज्ज्वल कर्तृत्व से भारतीय मनीषा को गौरवान्वित किया है।
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक