धर्मायण

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      Dharmayan vol. 88

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    • Dharmayan vol. 89 cover

      Dharmayan vol. 89

      January 2, 2021
      1
    • धर्मायण अंक संख्या 85, माघ-चैत्र 2071 वि.सं., जनवरी-मार्च 2015 ई.

      Dharmayan vol. 85

      May 10, 2020
      1
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      May 10, 2020
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      Dharmayan vol. 83

      May 10, 2020
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    • “धर्मायण” की अंक संख्या 82

      Dharmayan vol. 82

      May 10, 2020
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      May 9, 2020
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  • अंक 91-100
    • धर्मायण अंक संख्या 100 का मुखपृष्ठ

      dharmayan vol.100 Surya-Upasana Ank

      October 30, 2020
      4
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      Dharmayan vol. 97 Nag-puja Ank

      July 5, 2020
      6
    • Dharmayan vol. 96

      June 12, 2020
      0
    • आवरण धर्मायण, अंक 95

      Dharmayan vol. 95 Ganga Ank

      May 7, 2020
      2
    • धर्मायण अंक संख्या 94, वैशाख 2077 वि.सं.

      Dharmayan, vol. 94

      April 20, 2020
      2
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    • Dharmayan vol. 91
  • अंक 101-110
    • Dharmayan, vol. 110 Saptarshi Ank

      धर्मायण अंक संख्या 110, सप्तर्षि अंक

      August 22, 2021
      1
    • Dharmayan, vol. 110 Saptarshi Ank

      धर्मायण अंक संख्या 110, सप्तर्षि विशेषांक

      August 22, 2021
      1
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      Dharmayan vol. 110 Saptarshi Ank

      August 16, 2021
      1
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      धर्मायण अंक संख्या 109 पी.डी.एफ

      July 24, 2021
      1
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      July 24, 2021
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      July 5, 2021
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Dharmayan vol. 109 Brahma Ank

By सम्पादक-धर्मायण पत्रिका-महावीर मन्दिर, पटना
July 20, 2021
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Dharmayan vol. 109 Brahma Ank

धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की मासिक हिन्दी पत्रिका।

प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल, सम्पादक- पण्डित भवनाथ झा।

धर्मायण, अंक संख्या 109, ब्रह्मा विशेषांक, विक्रम संवत् 2078, 25 जुलाई से 22 अगस्त, 2021 ई. तक।

Dharmayan vol. 109 Brahma Ank
अंक सं. 109
  • (Title Code- BIHHIN00719),
  • धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
  • मूल्य : पन्द्रह रुपये
  • प्रधान सम्पादक  आचार्य किशोर कुणाल
  • सम्पादक भवनाथ झा
  • पत्राचार : महावीर मन्दिर, पटना रेलवे जंक्शन के सामने पटना- 800001, बिहार
  • फोन: 0612-2223798
  • मोबाइल: 9334468400
  • सम्पादक का मोबाइल- 9430676240 (Whtasapp)
  • E-mail: dharmayanhindi@gmail.com
  • Web: www.mahavirmandirpatna.org/dharmayan/
  • पत्रिका में प्रकाशित विचार लेखक के हैं। इनसे सम्पादक की सहमति आवश्यक नहीं है। हम प्रबुद्ध रचनाकारों की अप्रकाशित, मौलिक एवं शोधपरक रचनाओं का स्वागत करते हैं। रचनाकारों से निवेदन है कि सन्दर्भ-संकेत अवश्य दें।

सनातन धर्म में ब्रह्मा सृष्टि की रचना करनेवाले स्रष्टा माने गये हैं, वे ही विधाता, अर्थात् धारण और पोषण करनेवाले देवता माने गये हैं। ब्रह्मा का एक नाम है- द्रुघण, यानी वे इस संसार के वृक्ष को काटने वाले हैं, यानी संहारकर्ता भी हैं। जहाँ देवताओं का उल्लेख सामूहिक रूप से होता है, वहाँ– ब्रह्मादिदेव, कहा जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण देव, ब्रह्मा, की उपासना नहीं होती है- ऐसा दुष्प्रचार वर्तमान में प्रचलित है। ब्रह्मा के विषय में अनेक गलत धारणाऐँ फैलायी गयी हैं। समेकित अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्प्रचार बहुत पुराने नहीं हैं। सम्भवतः विगत दो शतकों में ये फैलाये गये हों। हमें ब्रह्मा के अनेक मन्दिर मिले हैं, अनेक मन्दिरों में उनकी पूजा होती है। इस अंक में ब्रह्मा के सम्बन्ध में वैदिक तथा पौराणिक साहित्य से प्रामाणिक प्रसंगों को लेकर उनकी महत्ता सिद्ध की गयी है। पत्रिका में देश भर के स्थापित विद्वानों ने अपना आलेख देकर इस अंक का गौरव बढ़ाया है।

वर्तमान में कोरोना संकट के कारण हम केवल ऑनलाइन पत्रिका प्रकाशित कर रहे हैं। स्थिति सामान्य होने पर इन अंकों का मुद्रण भी किया जायेगा।

फ्लिप बुक

तत्काल हमारे वेबसाइट से आप इसका फ्लिप बुक ऑनलाइन पढ़ सकते हैं अथवा एक साथ पूरा अंक पीडीएफ डाउनलोड कर निःशुल्क पढ़ सकते हैं तथा अपने मित्रों को भेज सकते हैं। वेबसाइट पर सभी आलेखों को अलग-अलग फेसिमाइल प्रति भी पढ सकते हैं।

Dharmayan-vol.-109-Ebookनिःशुल्क डाउनलोड 5.4 MB

इस अंक में कुल 11 आलेख प्रकाशित हैं। साथ ही, पत्रिका के स्थायी स्तम्भ भी हैं, जिनमें महावीर मन्दिर पटना के द्वारा जुलाई, 2021ई. में स्वास्थ्य-क्षेत्र में किये गये जनहित कार्यों का उल्लेख किया गया है।

ऑनलाइन पीडीएफ पढें

सभ आलेखों के शीर्षक, लेखक तथा विषय-वस्तु इस प्रकार हैं-

  1. ॐ प्रजापतये स्वाहा – सम्पादक भवनाथ झा की लेखनी से

इस सम्पादकीय आलेख में ब्रह्मा के कुल 44 नामों की व्याख्या की गयी है, साथ ही ब्रह्मा की उपासना में आयी कमी तथा इनकी स्तुति नहीं लिखे जाने के कारण के रूप में यहाँ शतपथ ब्राह्मण की उस कथा का उल्लेख किया गया है, जिसमें ब्रह्मा ने स्वयं मन को वाणी से श्रेष्ठ कहा था। इस पर वाणी ने ब्रह्मा से कहा कि मैं वाणी के द्वारा दी गयी आहुति आपतक नहीं ले जाऊँगी। फलतः आज भी “ॐ प्रजापतये स्वाहा” मन ही मन स्मरण कर ब्रह्माजी को आहुति दी जाती है। यही परम्परा आगे बढ़कर ब्रह्मा की स्तुति के अभाव का कारण बनी, मन्त्रहीन मानसिक उपासना धीरे-धीरे सिमटती गयी और परवर्ती काल में मूल कारण को नहीं जान पाने के फलस्वरूप ब्रह्मा के अपकर्ष के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ भी गढ़ ली गयीं। सम्पादकीय में इस विषय का विस्तार से वर्णन आया है।

2. ब्रह्म-सभा – श्री महेश प्रसाद पाठक

ब्रह्मा सृष्टिकर्ता माने गये हैं। उनका वर्णन ब्राह्मणग्रन्थों से लेकर पौराणिक साहित्य में प्रचुर हुआ है। महाभारत भी ब्रह्मा की सभा का विशद वर्णन प्रस्तुत करता है, जिसमें सभी देव, पितर, ऋषि आदि उपस्थित रहते हैं। इसी ब्रह्मसभा का उल्लेख बाणभट्ट ने हर्षचरित के आरम्भ में भी किया है। बाणभट्ट ने स्पष्ट रूप से देवी सरस्वती को ब्रह्मा की शक्ति मानकर दुर्वासा के शाप का प्रसंग उपस्थापित किया है, जिसके कारण सारस्वत का जन्म हुआ जो बाणभट्ट के पूर्वज थे। यहाँ लेखक ब्राह्मण-ग्रन्थों तथा पुराणों के आधार पर ब्रह्मा का विवेचन करते हुए महाभारत की ब्रह्म-सभा का विवरण दिया है।

3. सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा– डॉ. ललित मोहन जोशी

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा विगत एक-दो शताब्दियों से सनातन-विरोधियों के द्वारा दुष्प्रचार के विषय बना दिये गये हैं। पुराणों का कथा की अप्रासंगिक व्याख्या कर अनेक प्रकार से भ्रान्तियाँ फैलायी जा रही हैं। ठीक इसके विपरीत जब हम पुराणों में ब्रह्मा के प्रसंगों को देखते हैं तथा उनके नाम पर स्थापित तीर्थों का अवलोकन करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मा की गरिमा किसी से कम नहीं है। इनके नाम पर अनेक तीर्थ हैं। इन्हें सर्वत्र सृष्टिकर्ता तथा पितामह  कहा गया है। ब्रह्मा कालगणना के आधार हैं। वे नाथ-सम्प्रदाय में भी सर्वतोभद्र मंडल पर विराजमान हैं, जहाँ उनके आवाहन-मंत्र में उनकी व्यापकता का वर्णन आया है।

4. ब्रह्मा तिष्ठति दक्षिणे– पं. मार्कण्डेय शारदेय

सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा यज्ञ के अध्यक्ष माने गये हैं। वे दक्षिण भाग में बैठे हुए निरीक्षण करते हैं कि सब कुछ सही चल रहा है या नहीं। अग्नि की रक्षा का दायित्व उन्हीं के उपर होता है। इस प्रकार, प्रत्येक कर्मकाण्ड में जहाँ कहीं भी हवन होता है, ब्रह्मा की स्थापना की जाती है। ब्रह्मा के इस स्वरूप पर विस्तार से विमर्श यहाँ प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन काल में सबसे अनुभवी, विद्वान् तथा वृद्ध व्यक्ति को यज्ञ में ब्रह्मा बनाया जाता था, पर धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति के अभाव में कुश के ब्रह्मा का भी प्रचलन हुआ। लेखक ने स्पष्ट किया है कि यज्ञ में योग्यतम व्यक्ति को ब्रह्मा बनाया जाये। इस प्रकार, यज्ञ में ब्रह्मा की भूमिका पर यहाँ आलेख प्रस्तुत है।

5. ब्रह्मा, ब्राह्मपर्व और प्रतिमा स्वरूप– डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनूʼ

ब्रह्मा के सम्बन्ध में पौराणिक कथाओं की दुर्व्याख्या कर जो भी प्रचारित किया जाये, इतना तो निश्चित है कि वे सदा से जन-मानस तथा शास्त्रों में पूज्य रहे हैं। ब्रह्मा  सृष्टिकर्ता हैं, भाग्य लिखते हैं, ब्राह्मी लिपि के जनक है, सभी शास्त्रों के प्रवर्तक हैं। दैत्य-दानव-देव-मानव सब के प्रति समभाव रखनेवाले ब्रह्मा ने कभी स्वयं अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं किया, पर वे ब्रह्मास्त्र के अधिष्ठाता है। वस्तुतः ब्रह्मा ज्ञानमय हैं, ब्राह्मतेज के आदिदेव हैं। उनके अनेक मन्दिरों तथा मूर्तियों  का भी यहाँ विवेचन किया गया है।

6. ब्रह्म और ब्रह्मा– श्री अरुण कुमार उपाध्याय

भारतीय चिन्तन की दृष्टि से ब्रह्मा आदिदेव हैं, वे अपने निर्गुण रूप में दर्शन शास्त्र में प्रतिपादित ब्रह्म हैं, तथा सगुण रूप में सृष्टिकर्ता, चतुर्मुख, सरस्वती के स्वामी, भाग्य विधाता ब्रह्मा हैं। प्राच्य विद्या के मर्मज्ञ विद्वान् लेखक ने स्पष्ट किया है कि- “विश्व का मूल अव्यक्त चेतन तत्त्व ब्रह्म है। ब्रह्म का स्रष्टा रूप ब्रह्मा है। विष्णु के नाभि से कमल निकला और उस कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ। विष्णु को पद्मनाभ और ब्रह्मा को पद्मज कहा गया है। आकाश का दिव्य स्रष्टा तत्त्व अमृत ब्रह्मा है, पृथ्वी पर सभ्यता का विकास करने वाले मर्त्य ब्रह्मा हैं।”

7. ब्रह्मस्वरूप वरदान विमर्श– डा. सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य

ब्रह्मा के विवेचन की अनेक दृष्टियाँ हो सकतीं हैं। वे देव-प्रमुख हैं, सृष्टिकर्ता हैं। वे सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। ब्रह्मा उपास्य हैं अतः उनके उपासक भी हमें मिलते हैं- मुष्य ही नहीं, देव, दानव, दैत्य- सबके वे उपास्य हैं। दानवादि भी उनसे वरदान पाकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगते हैं, किन्तु उनमें विवेक मर जाता है, अतः वे नाश को प्राप्त होते हैं। निर्गुण रूप में जो ब्रह्म हैं वे भक्तों के कल्याण के लिए सगुण रूप में ब्रह्मा कहलाते हैं। यह उनका लीलावतार है। विशिष्टाद्वैत दर्शन की दृष्टि में ऐसा ही विवेचन यहाँ ब्रह्मा के सन्दर्भ में हुआ है।

8. बिहार में ब्रह्माजी का मन्दिर, ब्रह्मयोनि पर्वत– श्री रवि संगम

बिहार सांस्कृतिक तथा धार्मिक समन्वय का प्रदेश रहा है। यहाँ बौद्धों और सनातनियों के बीच का अद्भुत समन्वय दिखाई पड़ता है। गया में ब्रह्मयोनि पर्वत के एक शिखर पर ब्रह्माजी का मन्दिर है। इसे ब्रह्मा की उत्पत्ति का स्थान माना गया है।  यहाँ आकर लोग पितरों की मुक्ति के लिए पार्वण तथा तर्पण करते हैं। यहाँ बौद्ध धर्मावलम्बी भी पर्याप्त संख्या में आते हैं।  इस प्रकार, हम यह नहीं कह सकते हैं कि ब्रह्मा का एक ही मन्दिर पुष्कर में है।

9. ब्रह्मा की मूर्तियों का ऐतिहासिक विवेचन– डॉ. सुशान्त कुमार

पुरातत्त्व की दृष्टि से ब्रह्मा प्राचीनकाल में पूजित  रहे हैं। इनकी अनेक मूर्तियाँ विभिन्न कालों में बनायी गयी है। साहित्यिक स्रोतों के अतिरिक्त पुरातात्त्विक तथा मूर्तिकला की परम्परा के आधार पर ब्रह्मा का स्वरूप, उनकी ऐतिहासिकता, तथा प्रसिद्धि पर आधारित सूचनाएँ इस आलेख में दी गयी है। विशेष रूप से जब ऐसा कहा कहा जाता है कि भारत में ब्रह्मा के एक ही मन्दिर है तब भच्छी गाँव की ब्रह्मा की मूर्ति महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

10 विभिन्न पुराणों में उल्लिखित रामकथा– आचार्य सीताराम चतुर्वेदी

यह हमारा सौभाग्य रहा है कि देश के अप्रतिम विद्वान् आचार्य सीताराम चतुर्वेदी हमारे यहाँ अतिथिदेव के रूप में करीब ढाई वर्ष रहे और हमारे आग्रह पर उन्होंने समग्र वाल्मीकि रामायण का हिन्दी अनुवाद अपने जीवन के अन्तिम दशक (80 से 85 वर्ष की उम्र) में किया वे 88 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए। उन्होंने अपने बहुत-सारे ग्रन्थ महावीर मन्दिर प्रकाशन को प्रकाशनार्थ सौंप गये। उनकी कालजयी कृति रामायण-कथा हमने उनके जीवन-काल में ही छापी थी। उसी ग्रन्थ से रामायण की कथा हम क्रमशः प्रकाशित कर रहे हैं।- प्रधान सम्पादक

11. झारखण्ड के जगन्नाथ स्वामी – श्री विजयदेव झा

भगवान् जगन्नाथ केवल एक मन्दिर में नहीं बल्कि जन-मानस में विराजते हैं, अतः भक्तों ने जहाँ चाहा, दर्शन की सुविधा के लिए मन्दिर बना दिया। झारखण्ड में चार जगन्नाथ मन्दिर हैं– राँची, बोकारो, सीतागढ़ (हजारीबाग) और पालगंज, जहाँ की परम्परा मूल मन्दिर, पुरी के समान हैं। बोधगया में भी एक जगन्नाथ मन्दिर 18वीं शती का बना हुआ है। पिछले जगन्नाथ-विशेषांक में बोधगया एवं पालगंज के मन्दिरों पर विवरण हम प्रकाशित कर चुके हैं। इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार की लेखनी में प्रामाणिक विवरण के साथ राँची के भगवान् जगन्नाथ स्वामी पर आलेख प्रस्तुत है।

12. पुस्तक समीक्षा– समीक्षक- भवनाथ झा

पुस्तक का नाम- तत्त्वचिन्तन, लेखक- पं. मार्कण्डेय शारदेय, पटना

13. महावीर मन्दिर समाचार, मन्दिर समाचार (जुलाई, 2021)

महावीर वात्सल्य अस्पताल में बच्चों के लिए 90 ऑक्सीजन बेड का विशेष वार्ड का उद्घाटन

14. व्रत-पर्व, श्रावण, 2078 वि. सं. (25 जुलाई –  22 अगस्त, 2021ई.)

15. रामावत संगत से जुड़ें।

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    By admin
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    महावीर मन्दिर प्रकाशन

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  • bharat Chandrabaghele
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    महावीर मन्दिर प्रकाशन

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  • सम्पादक-धर्मायण पत्रिका-महावीर मन्दिर, पटना
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    महावीर मन्दिर प्रकाशन

    चण्डिकायन की अब कोई ...
  • अखिलेश कुमार मिश्र
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  • सम्पादक-धर्मायण पत्रिका-महावीर मन्दिर, पटना
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    January 10, 2022

    धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक

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