7. ब्रह्मस्वरूप वरदान विमर्श- डा. सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य
धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की मासिक हिन्दी पत्रिका।
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल, सम्पादक- पण्डित भवनाथ झा।
धर्मायण, अंक संख्या 109, ब्रह्मा विशेषांक, विक्रम संवत् 2078, 25 जुलाई से 22 अगस्त, 2021 ई. तक।
सनातन धर्म में ब्रह्मा सृष्टि की रचना करनेवाले स्रष्टा माने गये हैं, वे ही विधाता, अर्थात् धारण और पोषण करनेवाले देवता माने गये हैं। ब्रह्मा का एक नाम है- द्रुघण, यानी वे इस संसार के वृक्ष को काटने वाले हैं, यानी संहारकर्ता भी हैं। जहाँ देवताओं का उल्लेख सामूहिक रूप से होता है, वहाँ– ब्रह्मादिदेव, कहा जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण देव, ब्रह्मा, की उपासना नहीं होती है- ऐसा दुष्प्रचार वर्तमान में प्रचलित है। ब्रह्मा के विषय में अनेक गलत धारणाऐँ फैलायी गयी हैं। समेकित अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्प्रचार बहुत पुराने नहीं हैं। सम्भवतः विगत दो शतकों में ये फैलाये गये हों। हमें ब्रह्मा के अनेक मन्दिर मिले हैं, अनेक मन्दिरों में उनकी पूजा होती है। इस अंक में ब्रह्मा के सम्बन्ध में वैदिक तथा पौराणिक साहित्य से प्रामाणिक प्रसंगों को लेकर उनकी महत्ता सिद्ध की गयी है। पत्रिका में देश भर के स्थापित विद्वानों ने अपना आलेख देकर इस अंक का गौरव बढ़ाया है।
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इस अंक में कुल 11 आलेख प्रकाशित हैं। साथ ही, पत्रिका के स्थायी स्तम्भ भी हैं, जिनमें महावीर मन्दिर पटना के द्वारा जुलाई, 2021ई. में स्वास्थ्य-क्षेत्र में किये गये जनहित कार्यों का उल्लेख किया गया है।
ब्रह्मा के विवेचन की अनेक दृष्टियाँ हो सकतीं हैं। वे देव-प्रमुख हैं, सृष्टिकर्ता हैं। वे सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। ब्रह्मा उपास्य हैं अतः उनके उपासक भी हमें मिलते हैं- मुष्य ही नहीं, देव, दानव, दैत्य- सबके वे उपास्य हैं। दानवादि भी उनसे वरदान पाकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगते हैं, किन्तु उनमें विवेक मर जाता है, अतः वे नाश को प्राप्त होते हैं। निर्गुण रूप में जो ब्रह्म हैं वे भक्तों के कल्याण के लिए सगुण रूप में ब्रह्मा कहलाते हैं। यह उनका लीलावतार है। विशिष्टाद्वैत दर्शन की दृष्टि में ऐसा ही विवेचन यहाँ ब्रह्मा के सन्दर्भ में हुआ है।
- शाण्डिल्य, सुदर्शन श्रीनिवास (डा.), “ब्रह्मस्वरूप वरदान विमर्श”, धर्मायण, अंक 109, श्रावण, 2078 वि.सं., जुलाई-अगस्त, 2021 ई., महावीर मन्दिर, पटना, पृ. 50-53.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक