Dharmayan vol. 89
पत्रिका का यह अंक प्रकाशित प्रति भी मन्दिर में उपलब्ध है, इसे मन्दिर काउण्टर से प्राप्त कर सकते हैं।
- (Title Code- BIHHIN00719),
- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
- मूल्य : पन्द्रह रुपये
- प्रधान सम्पादक भवनाथ झा
- सहायक सम्पादक – श्री सुरेशचन्द्र मिश्र
- पत्राचार : महावीर मन्दिर, पटना रेलवे जंक्शन के सामने पटना- 800001, बिहार
- फोन: 0612-2223798
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- पत्रिका में प्रकाशित विचार लेखक के हैं। इनसे सम्पादक की सहमति आवश्यक नहीं है। हम प्रबुद्ध रचनाकारों की अप्रकाशित, मौलिक एवं शोधपरक रचनाओं का स्वागत करते हैं। रचनाकारों से निवेदन है कि सन्दर्भ-संकेत अवश्य दें।
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धर्मायण अंक संख्या 89 की विषय-सूची
- (सम्पादकीय) हनुमज्जागरणस्तुतिः— भवनाथ झा
- अब लौं नसानीं अब ना नसैहौं— सुरेश चन्द्र मिश्र
- पाण्डवगीता — (सम्पादक) शशिनाथ झा
- बक्सर में गंगा: अतीत से वर्तमान तक— लक्ष्मीकान्त मुकुल
- कोशी किनारे के लोकगीत— मगनदेव नारायण सिंह
- अष्टावक्र गीता – (हिंदी पद्यानुवाद)—उमाशंकर सिंह
- यज्ञ का आधार है मन्त्र-शक्ति— अशोक कुमार मिश्र
- पाटलिपुत्र की ऐतिहासिक विरासत— ओम प्रकाश सिन्हा
- तुलसी के मानवतावाद की प्रासंगिकता— आशुतोष मिश्र
- आदि शंकराचार्य— सविता मिश्रा ‘मागधी’
- कलियुग का काल— उषा रानी
- गण्डमूल दोष: भ्रान्ति एवं वास्तविकता— राजनाथ झा
- श्रवण कुमार पुरस्कार योजना
पाण्डव गीता का प्रामाणिक सम्पादन
इस अंक में डा. शशिनाथ झा के द्वारा सम्पादित पाण्डव-गीता का प्रकाशन किया गया है। डा. झा ने मिथिला की प्राचीन पाण्डुलिपि तथा अन्य प्रकाशित प्रतियों से मिलान कर पाठ का संशोधन-निर्धारण कर हिन्दी अर्थ के साथ इसे सम्पादित किया है। पाण्डवगीता भक्ति की परम्परा में अत्यन्त प्रसिद्ध स्तोत्र है। इसमें महाभारत के अनेक प्रमुख पात्रें ने अत्यन्त भक्ति-भाव से भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की है, जिनमें दुर्योधन सहित कौरवगण भी हैं।
इसका एक पाठ गीताप्रेस से प्रकाशित है, किन्तु इसमें श्लोकों की संख्या कम है। दरभंगा से प्राप्त प्राचीन पाण्डुलिपियों में अनेक स्थलों पर अधिक श्लोक हैं, अतः इसके पुनः संपादक की आवश्यकता हुई। जिन दिनों आचार्य किशोर कुणाल कामेश्वर संह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति थे, उन्हीं दिनों उनके आग्रह पर संस्कृत के मूर्द्धन्य विद्वान् एवं पाण्डुलिपि शास्त्र के गहन वेत्ता पं- शशिनाथ झा ने पाण्डव-गीता का सम्पादन 01- 04- 2003 ई- में किया था। जिसका प्रकाशन महावीर मन्दिर प्रकाशन से होना था। तत्काल यह ‘धर्मायण’ के पाठकों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है।
बक्सर में गंगा: अतीत से वर्तमान तक
गंगा हमारी जीवनदायिनी शक्ति रही है। आध्यात्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से गंगा का महत्त्व हमारे जीवन में है। विगत शताब्दी में इन्हें प्रदूषित कर हमने बहुत कुछ खो दिया है। बिहार के सिद्धाश्रम (बक्सर) के पास गंगा की प्राचीन स्थिति का वर्णन करते हुए लेखक ने ब्रिटिशकालीन पर्यटकों के यात्रा-वृत्तान्तों के आधार पर तुलना प्रस्तुत की है, जो यहाँ प्रस्तुत है।
यज्ञ का आधार है मन्त्र-शक्ति
भारतीय परम्परा में शब्द नित्य है, ब्रह्म है, उसका कभी विनाश नहीं होता है। शुभ शब्द परिवेश में फैलकर प्रकृति का पोषण करता है किन्तु अशुभ शब्द उसका विनाश करता है। महाभाष्यकार पतंजलि ने भी इस बात का संकेत किया है कि दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाहुः। स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात्। इस प्रकार शब्दस्वरूप मन्त्र अपनी शक्ति से यज्ञ के उद्देश्य को पूर्ण करने में समर्थ होता है। यज्ञ में सामग्री के विकल्प हो सकते हैं, किन्तु मन्त्र के विकल्प नहीं हो सकते हैं। यहाँ मन्त्र की इसी महिमा का बखान किया गया है।
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