आलेख संख्या- 3. “यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” लेखक डा. ललित मोहन जोशी

महावीर मन्दिर पटना के द्वारा प्रकाशित धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका ‘धर्मायण’ का आश्विन मास का अंक।
अंक संख्या 111। आश्विन, 2078 विक्रम संवत्। 21 सितम्बर से 20 अक्टूबर 2021ई. तक
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल। सम्पादक- पंडित भवनाथ झा।
महावीर मन्दिर के द्वारा वर्तमान में पत्रिका का केवल ऑनलाइन डिजटल संस्करण ई-बुक के रूप में निःशुल्क प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत अंक विषयों की विविधता से भरा हुआ है। इसमें भारत की शक्ति-उपासना, कृष्ण-उपासना, गणेश-उपासना, पितृ-उपासना, लक्ष्मी-उपासना तथा लोकदेवताओं की उपासना से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री संकलित किये गये हैं। साथ ही, विशिष्ट आलेख के रूप में धर्म के स्रोतों पर विवेचन किया गया है।
आलेख संख्या- 3. “यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” लेखक डा. ललित मोहन जोशी
आश्विन मास का सम्पूर्ण कृष्णपक्ष पितृपक्ष कहलाता है। इसमें विशेष रूप से अपने मृत पूर्वजों के प्रति तर्पण, पार्वण आदि के द्वारा श्रद्धाञ्जलि व्यक्त करते हैं। इस पितृकर्म का क्या महत्त्व है, यह कैसे किया जाता है, इसके सम्बन्ध में हमारी सनातन परम्परा क्या कहती है, इन विषयों पर विवेचन आज अधिक प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि पितृकर्म का विरोध संस्थागत स्तर पर विगत शताब्दियों से किये जा रहे हैं।
जोशी, ललित मोहन (डा.), “यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे”, धर्मायण, अक सं. 111, आश्विन अंक, महावीर मन्दिर पटना, आश्विन, 2078, (सितम्बर-अक्टूबर 2021ई.), पटना, पृ. 19-33.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक