Dharmayan vol. 99 Valmiki Ramayana Ank
वर्तमान में कोविड-19 के कारण पत्रिका केवल ई-बुक के रूप में ऑनलाइन प्रकाशित हो रही है।
आज एक सामान्य अवधारणा बन गयी है कि वाल्मीकि-रामायण का मुंबई-संस्करण जो गीता प्रेस से प्रकाशित है, वहीं एक मात्र पाठ है। जबकि सच्चाई है कि गीता प्रेस का पाठ रामायण का केवल दक्षिण-पश्चिम भारत का पाठ है। पूर्वोत्तर तथा पश्चिमोत्तर भारत का पाठ बहुत अंश में भिन्न हैं। पश्चिमोत्तर पाठ का प्रकाशन लाहौर से हुआ था तथा पूर्वोत्तर पाठ का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ था। रामायण पर की गयी विवेचना इन पाठों को देखा बिना पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि 1000 वर्ष पुरानी पाण्डुलिपि पूर्वोत्तर पाठ की ही मिलती है।
- (Title Code- BIHHIN00719),
- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
- मूल्य : पन्द्रह रुपये
- प्रधान सम्पादक आचार्य किशोर कुणाल
- सम्पादक भवनाथ झा
- पत्राचार : महावीर मन्दिर, पटना रेलवे जंक्शन के सामने पटना- 800001, बिहार
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आलेख-सूची, धर्मायण, वाल्मीकि-रामायण विशेषांक, आश्विन, वि.सं. 2077.
- वाल्मीकि-रामायण के विविध पाठ एवं उनका प्रकाशन –भवनाथ झा
- पश्चिम बंगाल में वाल्मीकि-रामायण से उत्कीर्ण चित्रों के शीर्षक-अभिलेख >>>
- श्रीराम : “रमयत्येव स गुणैः” –डा. सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य
- रामो विग्रहवान् धर्मः –आचार्य किशोर कुणाल
- मर्यादा पुरुषोत्तम परब्रह्म श्रीराम –डा. धीरेन्द्र झा
- वाल्मीकि-रामायण से स्वस्तिवाचन (स्तोत्र)
- वाल्मीकि-रामायण: पूर्वोत्तर पाठ की विशेषता –पं. शशिनाथ झा
- वाल्मीकि-रामायण: नेपाल से प्राप्त प्राचीनतम प्रतिलिपि –डा. सुशान्त कुमार
- वाल्मीकि-रामायण: अयोध्याकाण्ड की प्राचीन पाण्डुलिपियाँ –डा. काशीनाथ मिश्र
- महावीर हनुमान् की उद्घोषणा (स्तोत्र)
- आदिकवि वाल्मीकि के इतिहास में विविधता –साहित्यवाचस्पति डा. श्रीरंजन सूरिदेव
- वाल्मीकि-रामायण: ब्रह्मकृता श्रीरामस्तुतिः (स्तोत्र)
- वाल्मीकि-रामायण: कुछ ज्यौतिषीय प्रसंग –डा. रामाधार शर्मा
- वाल्मीकि-रामायण: वर्ष-गणना का रहस्य –श्री अरुण कुमार उपाध्याय
- आदित्यहृदय-स्तोत्र (स्तोत्र)
- राम-कथा –आचार्य सीताराम चतुर्वेदी
- मन्दिर समाचार, मातृभूमि-वंदना, व्रत-पर्व, रामावत संगत से जुड़िए आदि।
श्री अरुण कुमार उपाध्याय जी लिखते हैं-
धर्मायण का रामायण अंक अन्य अंकों की तरह संग्रहणीय है। जबसे पढ़ना सीखा, तब से रामायण पढ़ तथा सुन रहा हूँ। पर रामायण अंक देखने पर लगा कि बहुत जानना बाकी है। स्वयं अपने लेख से सम्बन्धित कई रहस्य अज्ञात हैं। पर जिज्ञासा होने पर कुछ समझने की चेष्टा करनी पड़ती है। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। (फेसबुक पर टिप्पणी)
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की प्राध्यापिका डा. सविता झा खान ने लिखा-
(फेसबुक पोस्ट)
“बाल्मीकि रामायण: एक गहन पड़ताल
बाल्मीकि रामायण भारतीय संस्कृति का एक उपजीव्य काव्य रहा है। इसमें वर्णित अनेक प्रसंग जैसे- रामवन-गमन, बालि-वध, रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता की अग्नि-परीक्षा, सीता का वनगमन, शम्बूक वध का प्रसंग, सीता का पाताल-प्रवेश आदि पर केन्द्रित चर्चा होती रहतीं है, जिनमें अनेक मतवाद उपस्थित हो जाते हैं। विमर्श के क्रम में वाल्मीकि-रामायण का जो प्रचलित पाठ यानी वर्तमान में गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित मुंबई संस्कऱण का दक्षिण-पश्चिमी पाठ है उसी का उपयोग होता है। लोग यह मान बैठे हैं कि बाल्मीकि-रामायण का केवल एक ही पाठ है।
वास्तव में हमें जानना चाहिए कि सम्पूर्ण बाल्मीकि-रामायण के कम से कम तीन पाठ हैं-
1. पूर्वोत्तर का पाठ, जो नेपाल, मिथिला, बंगाल, आसाम तथा उड़ीसा के क्षेत्र का है।
2. पश्चिम-उत्तर भारत का पाठ, जो काश्मीर, हरियाणा, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में है।
3. दक्षिण भारत तथा पश्चिम भारत का सम्मिलित पाठ, जो गीताप्रेस के द्वारा प्रकाशित है।
रामायण के इस विस्तार को जाने विना हम रामायण पर सार्थक विमर्श नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हमें इन प्रक्षेपों की सही जानकारी नहीं मिल पायेगी।
महावीर मन्दिर, पटना की पत्रिका #धर्मायण के सद्यःप्रकाशित “बाल्मीकि-रामायण विशेषांक” इसी स्थिति पर विमर्श प्रस्तुत करता है। सभी पाठों के सम्पादन की स्थिति, उपलब्धता, उनकी व्याख्याएँ आदि पर विमर्श हुआ है। यहाँ पूर्व-उत्तर भारत के पाठ की प्राचीनता सिद्ध की गयी है। नेपाल में उपलब्ध 1000 वर्ष पुरानी पाण्डुलिपि का विवेचन किया गया है। यह दिखाया गया है कि रामायण के इस प्राचीन पाठ में शम्बूक वध का प्रसंग है ही नहीं। सीता अपनी इच्छा से वन में रहने गयी है। सीता के दोहद (गर्भवती स्त्री की इच्छा) का यह प्रसंग है। अयोध्या के गुप्तचर के कहने पर राम ने सीता को निर्वासित किया, यह प्रसंग भी पूर्व-उत्तर पाठ में नहीं है। इस पाठ में केवल 90 सर्ग है, जबकि दक्षिण-पश्चिम पाठ में 120 सर्ग तक मिलते हैं। निश्चित रूप से ये अंश रामायण में 1000 वर्षों के भीतर जोड़े गये हैं। लोगों ने आपत्ति उठायी है कि रामायण में बुद्ध को चोर कहा गया है, वास्तविकता है कि जो श्लोक उद्धृत किया जाता है, वह पूर्व-उत्तर पाठ में है ही नहीं। रामायण में कालगणना के प्रसंगों पर दो प्रामाणिक आलेख भी संकलित हैं।
इस प्रकार धर्मायण का बाल्मीकि-रामायण विशेषांक रामकथा के प्रसंगों पर एक शोधपूर्ण व्य़ाख्या के लिए दिशा प्रस्तुत करता है, जिसपर चलकर हमें रामकथा के प्रसंगों पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस लिंक पर विस्तार से जानकारी दी गई है:
https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/dharmayan-vol-99-valmiki-ramayana-ank/“
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की प्राध्यापिका डा. सविता झा खान ने “मैथिली मचान(Maithili Machaan, मैथिली फकरा, खिस्सा आ गप्प” फेसबुक पोस्ट पर इसी अंक के बारे में लिखा-
(फेसबुक पोस्ट)
मिथिलाक सधहोरि, सीता आ रामायण: नव विमर्श
मिथिलामे “सधहोरि”क भार जाइत रहै। कोनो गर्भवती महिला जँ नैहरमे रहथि तँ सासुर सँ जाइ आ सासुरमे रहथि तँ नैहरसँ जाइ। ओहिमे विभिन्न प्रकारक पकमान, खीर आदि रहैत छलैक। ओहि महिलाकें की-की रुचैत छनि, तकर ध्यान राखल जाइत रहै। मान्यता छलै जे गर्भवस्थामे महिलाकें जे खएबा-पीबाक सेहन्ता होइत छै, जकरा पूरा नै कएलासँ बच्चा कें ‘लेर चुबै’ छै।
ई पुरान मान्यता थीक। प्राचीन कालमे “दोहद” एकरे कहल जाइत रहैक। अशोकक गाछक आलिंगन कएलासँ ओकरा पर पैर चलओलासँ अशोक फुला जाइत छैक- ई गुप्तकालक संस्कृत साहित्यक मान्यता थीक। संस्कृत साहित्य एहि दोहदक वर्णनसँ भरल अछि। एहूसँ पहिने शुद्धोदनक गर्भवती पत्नी माया कें सेहन्ता भेल रहनि जे लुम्बिनी वनमे भ्रमण करब आ ओतहि सिद्धार्थक जन्म भेल।
वाल्मीकि-रामायणक मिथिलाक पाठ उत्तरकाण्डक शीर्षक-सूचीमे भेटैत अछि- सीताक दोहद वर्णन। माने सीता सेहो गर्भवती रहथि तँ हुनका इच्छा भेलनि जे वनमे रहब। ओ रामसँ कहलनि। राम कहैत छथि- ‘दोहद पूरा करब हमर धर्म थीक। साधारणों व्यक्ति एहि अवस्थामे पत्नीक सभ इच्छा पूरा करबाक उत्साह रखैए।‘ मुदा दक्षिण आ पश्चिम भारतक पाठमे एकटा सर्ग आबि जुडि गेल- गुप्तचर आ रामक संवाद, सीता पर लागल अभियोग, आम जनतामे पसरल अपवाह। ई मिथिलाक वाल्मीकि-रामायणक पुरान पाठमे नै अछि। एतय अछि सीताक दोहदक पूर्ति। सीताक निर्वासन भेबे नै कएल, ओ अपनहिं मोनसँ वन गेलीह। परवर्ती रामायण सभ ओहि प्रक्षिप्त अंशकें आर नोन-तेल लगाकए करुणा उत्पन्न कएलक।
आइ जखनि रामकथा पर हमरालोकनि विवेचना करैत छी तँ ई ध्यान राखए पड़त जे एकर सभसँ पुरान पाठ नेपालक थीक, जे मिथिला, बंगाल आसाम आ उड़ीसा धरि पसरल अछि। एकर प्रकाशन सेहो भए चुकल अछि आ चैतन्यदेवक सहयोगी सन्त लोकनाथ एहि पर संस्कृत टीका सेहो लिखने छथि।
सर्वसुलभ गीताप्रेसक वाल्मीकि-रामायण एकमात्र रामायण नै थीक। अपन क्षेत्रक अपन रामायणक परिचय प्रस्तुत करैत महावीर मन्दिर, पटनाक पत्रिका #धर्मायण आएल अछि। एकर संपादक पं. भवनाथ झा कें अशेष धन्यवाद दैत छियनि जे वाल्मीकि-रामाय़णक विभिन्न संस्करण सभक पर शोध आलेखक संकलन कए एकरा सुलभ करओलनि।
https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/dharmayan-vol-99-valmiki-ramayana-ank/
Dr. Dhirendra Narain Sinha has written : (Whats App)
Informative and suited for research. Congratulations for this grand work.
अद्भुत, अद्वितीय। 💖🙏🙏
Sent by Ravi Ojha through email :
प्रतिक्रिया :-
‘धर्मायण’-पत्रिका के विशेषाङ्क बहुत-ही उपयोगी सिद्ध हुये, विशेषकर वाल्मीकीय-रामायण पर आधारित अङ्क, जिसको मैं ऐतिहासिक-दृष्टि से महत्त्वपूर्ण-सङ्ग्रह कह सकता हूँ। कारण : इस विशेषाङ्क के-द्वारा जनसामान्य के बीच पनपती एक वह भ्रान्ति खत्म हो सकती, जिसमें लोगों ऐसा लगता कि ऐतिहासिक-पौराणिक (हस्तलिखित)ग्रन्थ उसी तरह से सङ्ग्रहीत होते आये जैसे आजकल की यन्त्रलिखित पुस्तकें (जबकि दोनों में बहुत-भेद दिखते) और साथ ही यह भी एक खेद का विषय प्रकट हुआ कि आधुनिक-भारत में भारतीय-ग्रन्थों का भारतीय-रीति से प्रचार न होकर विदेशियों द्वारा दूषित इतिहास की ही प्रसिद्धि हो रही। अध्ययनरत-लोगों के-लिये ग्रन्थों के सभी-पाठ उपयोगी सिद्ध हो सकते। खेमराज, गीताप्रेस आदि से ग्रन्थों की प्रसिद्धि हुई, यह बहुत-प्रसन्नता की बात परन्तु उनके संस्करणों में एक ही तरह का पाठ देना और बहुत-अधिक जानकारी होने पर भी उन पाण्डुलिपियों/अन्य-पाठों की ओर सङ्केत न करना -जहाँ से ये पाठ आया- ये खेद की बात ; वहीं कुछ पाश्चात्य-पद्धति का अनुसरण करनेवालों ने सभी पाठों की बातें करके अपनेको बड़ा-खोजकारी और अध्ययनरत प्रसिद्ध किया और फिर अपनी इसी-प्रसिद्धि के दम पर और अपने विचारों से इतिहास को दूषित करने की कोशिश की। भारतीयों के-लिये धर्मायण-का ये ‘वाल्मीकीय-रामायण’अङ्क अपने-ग्रन्थों की सभी-पाण्डुलिपियों की ओर प्रेरित-करे।
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अपनी-बात:-
उक्त-अङ्क में वर्णित स्थिति केवल वाल्मीकीय-रामायण की ही नहीं अपितु बहुत-से ग्रन्थों की, उदाहरण – शिव-पुराण (जिसके दो रूपों की चर्चा मिलती, एक तो संहितात्मक और दूसरा खण्डात्मक, संहितात्मक के भी दो तरह के संस्करण छप चुके और बहुत सी संहितायें भी मिलती परन्तु कुछ ही संहिताओं को प्रसिद्धि प्राप्त), ऐसे ही स्कन्द-पुराण का हाल। इन सबपर भी कोई विशेषाङ्क तैयार हो तो मुझ जैसे पाठकों को बहुत लाभ मिल-सकता क्योंकि रामायण-की जानकारी के-लिये मैं बहुत-दिनों से इण्टरॅ्नट पर खोज किया-रहा। मैंने स्वयम् संस्कृत को अच्छे-से सीखने का प्रयास शुरू-किया और उससे भी पहले मैंने विविध भारतीय-लिपियाँ सीखना आरम्भ किया जिससे कि भाषा आये-न-आये परन्तु ग्रन्थ के विभिन्न-संस्करणों की लिपि तो समझ में आये आपकी कृपा से ये खोज आगे बढ़-पायी। भारतीय-दृष्टि रखते हुये ये जानकारियाँ आपके माध्यम से प्राप्त हुईं, नहीं तो विकीपीडिया इत्यादि पर पाश्चात्य-दृष्टिकोण ही प्रसिद्ध मिलता। इसके-लिये मैंं आपका आभारी हूँ।