धर्मायण, अंक संख्या 111, आश्विन मास का अंक

महावीर मन्दिर पटना के द्वारा प्रकाशित धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका ‘धर्मायण’ का आश्विन मास का अंक।
अंक संख्या 111। आश्विन, 2078 विक्रम संवत्। 21 सितम्बर से 20 अक्टूबर 2021ई. तक
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल। सम्पादक- पंडित भवनाथ झा।
महावीर मन्दिर के द्वारा वर्तमान में पत्रिका का केवल ऑनलाइन डिजटल संस्करण ई-बुक के रूप में निःशुल्क प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत अंक विषयों की विविधता से भरा हुआ है। इसमें भारत की शक्ति-उपासना, कृष्ण-उपासना, गणेश-उपासना, पितृ-उपासना, लक्ष्मी-उपासना तथा लोकदेवताओं की उपासना से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री संकलित किये गये हैं। साथ ही, विशिष्ट आलेख के रूप में धर्म के स्रोतों पर विवेचन किया गया है।
- (Title Code- BIHHIN00719),
- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
- मूल्य : पन्द्रह रुपये
- प्रधान सम्पादक आचार्य किशोर कुणाल
- सम्पादक भवनाथ झा
- पत्राचार : महावीर मन्दिर, पटना रेलवे जंक्शन के सामने पटना- 800001, बिहार
- फोन: 0612-2223798
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वर्तमान में कोरोना संकट के कारण हम केवल ऑनलाइन पत्रिका प्रकाशित कर रहे हैं। स्थिति सामान्य होने पर इन अंकों का मुद्रण भी किया जायेगा।
इस अंक के आलेखों के शीर्षक तथा उनके विवरण इस प्रकार हैं-
सम्पादकीय आलेख- “आश्विन मास : इतिहास तथा पुराणों के सन्दर्भ में”– पण्डित भवनाथ झा
दुर्गा-पूजा प्रमुख रूप से आश्विन मास में मनाया जाता है। आश्विन के नवरात्र को वार्षिक-पूजन कहा गया है। यह एक सहज प्रश्न है कि आश्विन मास के साथ दुर्गा की उपासना का विशेष सम्बन्ध क्या है? साथ ही, दुर्गा का वाहन सिंह क्यों है? क्या इसका कोई खगोलशास्त्रीय तथ्य है? आश्विन मास में दुर्गा-उपासना की विशेषता पर अग्रतर शोध के लिए कुछ संकेत स्थापित किये गये हैं, जिनसे चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं।
आलेख संख्या- 2. “ऋषियों के द्वारा निर्दिष्ट धर्म के स्रोत” लेखक श्री राधा किशोर झा
सनातन परम्परा में धर्म अच्छी तरह परिभाषित है। वैदिक साहित्य, महाभारत, रामायण, पौराणिक साहित्य सब में धर्म पर विशद चर्चा है और जब हम सबको एकत्र कर देखते हैं हैं; तो हर जगह एक ही बात लिखी हुई है; जिसका निचोड़ है- प्राणिमात्र का कल्याण, सर्वत्र समता की भावना का प्रचार। हमें धर्म की प्राप्ति कैसे होगी’ इसके क्या स्रोत हैं’ क्या करने से हमें धर्म होगा और क्या करने से अधर्म; इस पर सनातन परम्परा में कोई मतभेद नहीं है। धर्म के तीन रूप- सामान्य, विशेष तथा परम धर्म को समझाते हुए यह आलेख प्रस्तुत है।
आलेख संख्या- 3. “यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” लेखक डा. ललित मोहन जोशी
आश्विन मास का सम्पूर्ण कृष्णपक्ष पितृपक्ष कहलाता है। इसमें विशेष रूप से अपने मृत पूर्वजों के प्रति तर्पण, पार्वण आदि के द्वारा श्रद्धाञ्जलि व्यक्त करते हैं। इस पितृकर्म का क्या महत्त्व है; यह कैसे किया जाता है; इसके सम्बन्ध में हमारी सनातन परम्परा क्या कहती है; इन विषयों पर विवेचन आज अधिक प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि पितृकर्म का विरोध संस्थागत स्तर पर विगत शताब्दियों से किये जा रहे हैं।
“कविता कुसुम”- सुश्री पुनीता कुमारी श्रीवास्तव एवं श्री घनश्याम दास हंस
सुश्री पुनीता कुमारी श्रीवास्तव की दो लघु कविताएँ “जय विंध्याचली माता” एवं “माँ दुर्गा की भक्ति गाथा” यहाँ प्रोत्साहनार्थ प्रकाशित हैं। साथ ही, दलित चेतना के सकारात्मक सन्त कवि श्री घनश्याम दास हंस की अप्रकाशित काव्यकृति श्रीरविदास से भी एक कविता “गुरुमाता लोणा दासी दर्शन” प्रकाशित है।
आलेख संख्या- 4. “श्रीकृष्ण बाललीला अवस्था विमर्श” लेखक- शत्रुघ्नश्रीनिवासाचार्य पण्डित शम्भुनाथ शास्त्री ‘वेदान्ती’
आनन्दकन्द भगवान् श्रीकृष्ण की लीला यमुना के तट पर गोप-गोपियों के बीच हुई थी, जिसे लेकर अनेक भ्रान्तियाँ काव्यों, चित्रों तथा कथाओं के माध्यम से फैलाये जा रहे हैं। वास्तविकता है कि भागवतकार ने उऩकी लीलाओं में उनकी उम्र का भी उल्लेख किया है। गोवर्द्धन पर्वत उठाते समय वे केवल सात वर्ष के थे। कंस का वध उन्होंने आठवें वर्ष में किया था। इस विषय पर अवस्था निर्णय करते हुए भागवत के मर्मज्ञ विद्वान् द्वारा प्रस्तुत दो अंकों में समाप्य यह धारावाहिक आलेख यहाँ प्रकाशित है।
आलेख संख्या- 5. “कृष्ण-जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण के साथ दुर्गा की पूजा”– लेखक श्री गिरिजानन्द सिंह
कृष्णजन्म के ही काल में यशोदा के गर्भ से योगमाया भगवती का आविर्भाव हुआ था, जिसका संकेत दुर्गासप्तशती में भी है– नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा। ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी। इसी विन्ध्याचल-वासिनी ने शुम्भ और निशुम्भ का वध किया था। मिथिला की समन्वयात्मक परम्परा में श्रीकृष्णजन्माष्टमी के साथ दुर्गा की मूर्ति-पूजा की भी परम्परा प्राचीन काल से रही है। यहाँ बनैली राजपरिवार की इस परम्परा का पारिवारिक विवरण प्रस्तुत है।
आलेख संख्या- 6. “गणपति अथर्वशीर्ष में गणेश-मंत्रोद्धार विचार” लेखक- श्री अंकुर पंकजकुमार जोषी
भगवान् गणेश के मन्त्र को लेकर आज एक फैशन चल पड़ा है- गं गणपतये नमः। जबकि यह शास्त्र से प्रमाणित नहीं है। गणपति अथर्वशीर्ष में जो मन्त्रोद्धार का विधान है उसके अनुसार केवल- ॐ गँ ॐ होना चाहिए। मन्त्र में मनमाने ढंग से जोड़ने पर उसका प्रभाव समाप्त होने की बात भी कही गयी है। अतः हम शास्त्र को छोड़कर मनमाना करेंगे तो गीता के शब्दों में वह ‘कामकार’ कहलायेगा, जो निन्दनीय है
आलेख संख्या- 7. “आरोग्य धाम-अश्विनी कुमार” लेखक श्री महेश प्रसाद पाठक
आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को अश्विनी नक्षत्र होता है। अश्विनी नक्षत्र में दो तारे होते हैं, वे अमृतमय माने गये हैं। इन्हें अश्विनीकुमारों की संज्ञा दी गयी है तथा देवताओं के वैद्य के रूप में उन्हें वैदिक तथा पौराणिक साहित्य में प्रतिष्ठा मिली है। ये दोनों नक्षत्र आश्विन मास से जुड़े हुए हैं। आश्विन की पूर्णिमा के दिन इसी अश्विनी नक्षत्र के संयोग से चन्द्रमा की रश्मि अमृतमयी हो जाती है। इसी तथ्य को स्पष्ट करता हुआ यह आलेख प्रस्तुत है।
आलेख संख्या- 8. “‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में प्रयुक्त कृष्ण के नाम पर्यायों का शैलीगत अध्ययन” लेखक डॉ. विजय विनीत
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् कृष्ण के अनेक नाम आये हैं। इन नामों के यथास्थान प्रयोग का भी अपना विशिष्ट तात्पर्य है। “प्रस्तुत निबन्ध में कृष्ण के नाम पर्यायों का अध्ययन इसी दृष्टि से किया गया है कि यह ज्ञात हो कि उनके नाम पर्यायों का क्या महत्व है तथा नाम-पर्याय नामी के सन्दर्भगत महत्व को बिम्बित करने में कहाँ तक सफल हो सके हैं।”
आलेख संख्या- 9. “सामवेदीय कौथुमशाखा का परिचय” लेखक डा. सुन्दरनारायण झा
सामवेद भारतीय संगीत शास्त्र की परम्परा है, यह गान है जो विलुप्त होता जा रहा है। सम्पूर्ण उत्तर भारत में यदि लोग वेदाध्ययन करते भी हैं तो उऩका श्रम यजुर्वेद से आरम्भ होकर उसी पर समाप्त हो जाता है, क्यों कि कर्मकाण्ड कराकर जीविकोपार्जन के लिए वही पर्याप्त जाता है। महावीर मन्दिर, पटना के द्वारा पं. जगदानन्द झा के स्वर में चारों वेदों का ध्वन्यंकन कराया गया है। इसमें सामवेद की किस शाखा का स्वर अंकित है, इसका परिचय यहाँ गया है।
आलेख संख्या- 10. “शरत्-पूर्णिमा- कोजागरा एवं कौमुदी महोत्सव” लेखक श्रीमती रंजू मिश्र
आश्विन मास की पूर्णिमा महत्त्वपूर्ण है। एक अन्य लेख में हम पढ़ चुके हैं कि इस रात्रि की चन्द्रिका अमृतमयी मानी गयी है, अतः मगध क्षेत्र में कौमुदी महोत्सव की परम्परा मौर्यकाल में भी मिलती है। इसी रात्रि कोजागरा का लोकपर्व मनाया जाता है, जिसमें लक्ष्मी की पूजा होती है और नव वर-वधू का भी विशेष उत्सव होता है, जिसमें चुमाओन कराया जाता है। इस लोक-संस्कृति का प्रलेखन यहाँ किया गया है।
आलेख संख्या- 11. “जीमूतवाहन की आराधना का लोकपर्व जितिया” लेखक श्रीमती रंजू मिश्र
आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को विद्याधरों के राजा जीमूतवाहन की उपासना की जाती है। ये जीमूतवाहन बोधिसत्त्व के रूप माने गये हैं, जिन्होंने माता की प्रार्थना पर उसके पुत्र एक नाग को बचाने के लिए अपना शरीर गरुड़ को अर्पित कर दिया था। ऐसे करुणामय, परोपकारी लोकदेवता की पूजा सनातन परम्परा में भी होती है। यह बौद्धों और सनातनियों का एकता का प्रमाण है।
आलेख संख्या- 12. “कालिदासकृत रघुवंशकी रामायण-कथा- रामकथा” लेखक आचार्य सीताराम चतुर्वेदी
यह हमारा सौभाग्य रहा है कि देश के अप्रतिम विद्वान् आचार्य सीताराम चतुर्वेदी हमारे यहाँ अतिथिदेव के रूप में करीब ढाई वर्ष रहे और हमारे आग्रह पर उन्होंने समग्र वाल्मीकि रामायण का हिन्दी अनुवाद अपने जीवन के अन्तिम दशक (80 से 85 वर्ष की उम्र) में किया वे 88 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए। उन्होंने अपने बहुत-सारे ग्रन्थ महावीर मन्दिर प्रकाशन को प्रकाशनार्थ सौंप गये। उनकी कालजयी कृति रामायण-कथा हमने उनके जीवन-काल में ही छापी थी। उसी ग्रन्थ से रामायण की कथा हम क्रमशः प्रकाशित कर रहे हैं। – प्रधान सम्पादक
पुस्तक समीक्षा
इस स्थायी स्तम्भ के अन्तर्गत इस अंक में “जागेश्वर टेम्पुल्स आर्कियो कल्चरल पर्सपेक्टिव” पुस्तक की समीक्षा प्रकाशित की गयी है। अंगरेजी की इस पुस्तक की लेखिका डा. नीहारिका हैं तथा समीक्षक है- डा. श्रीकृष्ण जुगनू।
महावीर मन्दिर समाचार
इस स्थायी स्तम्भ के अंतर्गत भाद्रपद मास में महावीर मन्दिर के द्वारा जहहित में किये गये कार्यों का विवरण है। इसी अवधि में गणेश चतुर्थी के दिन महावीर कैंसर संस्थान में 30 शय्या वाले आइ.सी.यू. का शुभारम्भ हुआ है। मन्दिर में श्रीकृष्णाष्टमी एवं श्रीगणेश चतुर्थी के उत्सव का भी सचित्र समाचार प्रकाशित है।
महावीर मन्दिर में हनुमानजी के नाम दिव्य अर्पण एवं वैदिक कर्मकाण्ड की व्यवस्था
महावीर मन्दिर के द्वारा नियमित रूप से धार्मिक कृत्यों का आयोजन किया जाता है, जिनमें भगवान् की भोग, अखण्ड-ज्योति, सिन्दूर शृंगार, दरिद्रनारायण भोज आदि भी हैं। इस अंक में उनका विवरण दिया गया है साथ ही, पटना के बाहर से जो लोग इसमें सहभागिता निभाना चाहते हैं उनके लिए सूचना दी गयी हैं।
व्रत-पर्व
आश्विन मास के प्रमुख व्रत-पर्वों की तिथि-तालिका दी गयी है।
रामावत संगत से जुड़ें
महावीर मन्दिर, पटना के द्वारा जगद्गुरु रामानन्द के सामाजिक समरसता के सिद्धान्त पर रामावत संगत की स्थापना 2014 ई. में की गयी है। इसके अंतर्गत दीक्षा के द्वारा समाज को जोड़ने का एक आन्दोलन आरम्भ किया गया है। इस दीक्षा की विशेषता है कि इसमें दीक्षा-गुरु स्वयं हनुमानजी होते हैं। इस रामावत संगत से कैसे जुडें, इसके लिए निर्देश भी यहाँ प्रकाशित किया गया है।
आश्विन, 2078 विक्रम संवत् (21 सितम्बर से 20 अक्टूबर 2021ई. तक) का यह अंक ऑनलाइन डिजिटल संस्करण निःशुल्क हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है। धर्मायण डॉट कॉम पर इसे पढ़ सकते हैं।
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक