आलेख संख्या- 6. “गणपति अथर्वशीर्ष में गणेश-मन्त्रोद्धार विचार” लेखक- श्री अंकुर पंकजकुमार जोषी
महावीर मन्दिर पटना के द्वारा प्रकाशित धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका ‘धर्मायण’ का आश्विन मास का अंक।
अंक संख्या 111। आश्विन, 2078 विक्रम संवत्। 21 सितम्बर से 20 अक्टूबर 2021ई. तक
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल। सम्पादक- पंडित भवनाथ झा।
महावीर मन्दिर के द्वारा वर्तमान में पत्रिका का केवल ऑनलाइन डिजटल संस्करण ई-बुक के रूप में निःशुल्क प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत अंक विषयों की विविधता से भरा हुआ है। इसमें भारत की शक्ति-उपासना, कृष्ण-उपासना, गणेश-उपासना, पितृ-उपासना, लक्ष्मी-उपासना तथा लोकदेवताओं की उपासना से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री संकलित किये गये हैं। साथ ही, विशिष्ट आलेख के रूप में धर्म के स्रोतों पर विवेचन किया गया है।
आलेख संख्या- 6. “गणपति अथर्वशीर्ष में गणेश-मन्त्रोद्धार विचार” लेखक- श्री अंकुर पंकजकुमार जोषी
भगवान् गणेश के मन्त्र को लेकर आज एक फैशन चल पड़ा है- गं गणपतये नमः। जबकि यह शास्त्र से प्रमाणित नहीं है। गणपति अथर्वशीर्ष में जो मन्त्रोद्धार का विधान है उसके अनुसार केवल- ॐ गँ ॐ होना चाहिए। मन्त्र में मनमाने ढंग से जोड़ने पर उसका प्रभाव समाप्त होने की बात भी कही गयी है। अतः हम शास्त्र को छोड़कर मनमाना करेंगे तो गीता के शब्दों में वह ‘कामकार’ कहलायेगा, जो निन्दनीय है।
जोषी, अंकुर पंकजकुमार, “गणपति अथर्वशीर्ष में गणेश-मन्त्रोद्धार विचार”, धर्मायण, अक सं. 111, आश्विन अंक, महावीर मन्दिर पटना, आश्विन, 2078, (सितम्बर-अक्टूबर 2021ई.), पटना, पृ. 43-44.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक