पुस्तक समीक्षा- ‘भारतीय संस्कृति और गकार के प्रतीक।’ लेखक- डा. बिन्देश्वरी प्रसाद ठाकुर ‘विमल’
समीक्षक- भवनाथ झा
धर्मायण, अंक संख्या 125, अगहन विशेषांक, 2079 वि.सं., पृ. सं. 75-76
पुस्तक समीक्षा- ‘भारतीय संस्कृति और गकार के प्रतीक।’
लेखक- डा. बिन्देश्वरी प्रसाद ठाकुर ‘विमल’।
प्रकाशक- सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली, जे.-49, स्ट्रीट सं. 38, राजापुरी मेन रोड, नई दिल्ली।
प्रकाशन वर्ष– 2022ई.
ISBN- 978-93-93605-21-4.
मूल्य- 1499 रुपये।
पृष्ठ संख्या- 664. आकार- डिमाई। आवरण- हार्डबाउंड।
यह पुस्तक भारतीय संस्कृति में गणेश, गाय, गायत्री, गीता, गोविन्द एवं गंगा इन छह विशिष्ट तत्त्वों पर विवेचन प्रस्तुत करती है। ये सभी भारतीय संस्कृति के आधारस्तम्भ माने गये हैं तथा संयोगवश सभी गकार से आरम्भ होने वाले हैं अतः लेखक ने पुस्तक का नामकरण ‘गकार के प्रतीक’ के रूप में किया है। इस प्रकार पुस्तक छह खण्डों में विभक्त है।
सभी खण्डों में लेखक ने व्यापक सनातन धर्म के ग्रन्थों से उद्धरण लेकर विवेचन किया है। वे वेद, उपनिषद्, महाभारत, वाल्मीकि-रामायण, पुराण, धर्मशास्त्र, आगम-साहित्य, तन्त्र-साहित्य आदि सभी ग्रन्थों के आधार पर विवेचन किया है। साथ ही, लेखख की नजर विदेशियों के द्वारा भाषाविज्ञान तथा आधुनिक इतिहास दृष्टि से किये गये कार्यों का भी वे विवेचन करते हैं तथा जहाँ कहीं भी वे भारतीय परम्परा से उन्हें भिन्न पाते हैं, सप्रमाण खण्डन करते हैं। गणेश के विवेचन के क्रम में उन्होंने मैक्समूलर के द्वारा कही गयी हास्यात्मक पंक्तियों को उद्धृत कर उसका खण्डन किया है। लेखक ने हिन्दी के प्राचीन कवियों द्वारा लिखे गये पद्यों के आधार पर विवेचन कर पूरी परम्परा को चित्रित करने का प्रयास करते हैं। वे गणेश उपासना-विधि तथा भारत में गणेश से सम्बन्धित मन्दिरों की भी सूची प्रस्तुत करते हैं। गणेश के सन्दर्भ में उन्होंने भारत के विभिन्न सम्प्रदायों यथा बौद्ध, जैन, रामानुजीय,माध्व, रामानन्दीय, गाणपत्य आदि के परिप्रेक्ष्य में विवेचन कर अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय दिया है। इस प्रकार वे साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर इन विषयों को देखते हैं, जो इनकी व्यापक शोध-दृष्टि है।
गाय के सन्दर्भ में तो उन्होंने न केवल सांस्कृतिक सन्दर्भ में विवेचन किया है, बल्कि गाय के अनेक रोगों का विवरण देकर उसके लिए होमियोपैथी तथा एलोपैथी चिकित्सा का भी संकेत कर दिया है ताकि गोपालक आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक से सही समय पर संपर्क करें। गाय के सम्बन्ध में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जो विवेचन किया गया है उससे मध्यकाल से लेकर आजतक गोरक्षा के लिए किये गये भारतीय प्रयास को सन्दर्भित किया गया है। वेदों में गोमांस के भक्षण पर विधर्मियों के द्वारा उठाये गये विवाद का समुचित उत्तर देकर लेखक ने इसका खण्डन किया है। 2014 ई. में संसदीय चुनाव प्रचार में जो ताजा घटना हुई है, उस सन्दर्भ में लेखक ने मेध शब्द जुड़े अन्य वैदिक यज्ञों का हवाला देकर सिद्ध किया है कि गोमेध तथा नरमेधयज्ञ में वध करने की कोई प्रथा नहीं थी। इस प्रकार, लेखक ने सनातन धर्म के पाठकों के लिए प्रचुर सामग्री देकर उनके ज्ञान में वृद्धि की है।
इसी प्रकार गायत्री के सम्बन्ध में मन्त्र का स्वरूप, वेदमाता के रूप में उनकी उत्पत्ति, गायत्री साधना, दीक्षा, गायत्री-पुरश्चरण के विविध रूप, दार्शनिक तथा शब्दशास्त्रीय व्याख्या, दीक्षाविधि आदि विविध पक्षों को आगम-शास्त्र की दृष्टि से प्रस्तुत कर दिया है।
गीता के सन्दर्भ में भी लेखक ने इसके विविध पक्षों का संक्षेप में निदर्शन कराया है। जो बातें पाठकों को विभिन्न ग्रन्थो के पढ़ने से मिलेगी उनका संक्षेप यहाँ सरल भाषा में प्रस्तुत कर वास्तव में विस्तृत विवेचन पढ़ने के लिए लेखक ने पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। वे सभी अध्यायों का संक्षेप में भाव प्रस्तुत करते हुए यही कार्य कर रहे हैं। गीता में प्रयुक्त विभिन्न छन्दों का विवेचन यद्यपि अपने विषय से हटकर है, पर सस्वर पाठ करने वाले व्यक्ति के लिए इसे जानना महत्त्वपूर्ण है।
भारतीय संस्कृति में गोविन्द की महिमा अपरम्पार है। इस विषय पर हजारों पृष्ठ लिखे जा सकते हैं, किन्तु यहाँ लेखक ने आम पाठक के लिए सूचीबन्धन शैली में बहुत सामग्री दे दी है, जिसके पढ़ने के बाद पाठक विस्तार से पढ़ना चाहेंगे। कहाँ-कहाँ किस विषय पर विशिष्ट सामग्री है उसका भी उल्लेख कर दिया गया है। लेखक का इतिहासबोध वैज्ञानिक है अतः वे महाभारत युद्ध एवं श्रीकृष्ण के जन्म का कालनिर्णय करने के क्रम में पाश्चात्त्य तथा भारतीय इताहासकारों के मतों का उल्लेख कर उनकी संगति बैठाते हुए निष्कर्ष निकाला है।
अन्तिम खण्ड में गंगा पर विवेचन किया गया है। भारतीय प्राचीन साहित्य में गंगा का उल्लेख दिखाने के बाद गंगा की उत्पत्ति से सम्बन्धित विविध कथाओं का संकलन किया गया है। साथ ही एक अध्याय में गंगा के धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक तथा औषधीय पक्ष को रखा गया है। गंगा का भौगोलिक विस्तार तथा गोमुख से गंगासागर तक के विभिन्न तीर्थों को भी यहाँ सूचीबद्ध किया गया है। प्राच्य तथा पाश्चात्त्य विद्वानों की दृष्टि में गंगाजल पर विभिन्न उद्गारों को भी संकलित किया गया है। गंगाजल पर जो वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं, उनके विवेचन के साथ हिन्दी के कवियों की दृष्टि में गंगा पर संकलन प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार, प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय संस्कृति के उपर्युक्त छह तत्त्वों से सम्बन्ध सामान्य भाषा में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराता है। पाठकों को यहाँ एकत्र समग्र सूचनाएँ उपलब्ध हो जाती है अथवा उन्हें सूचनाओं का स्रोत मिल जाता है। यह पुस्तक सभी सनातनी लोगों को पढ़ना चाहिए। इससे हमें सनातन धर्म में समन्वय तथा इसके व्यापक स्वरूप का भी आभास हो जाता है। लेखक तथा प्रकाशक को इस पुस्तक के लिए धन्यवाद!
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक