Dharmayan vol. 101 Vaishnava-upasana Ank
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अंक संख्या 101, हिन्दी धार्मिक पत्रिका “धर्मायण”
महावीर मंदिर की ओर से प्रकाशित धर्मायण पत्रिका का 101वाँ अंक वैष्णव-उपासना विशेषांक कई अर्थों में विशेष है। इस अंक में भगवान् विष्णु एवं उनसे सम्बद्ध देवों की उपासना एवं इसकी महत्ता पर विशेष सामग्री प्रकाशित है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् ने अग्रहायण मास को अपना स्वरूप माना है। कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के बाद का यह पहला मास है। वैदिक काल में जब कृतिका नक्षत्र में वसन्त सम्पात होता था और कार्तिक मास की पूर्णिमा को अग्न्याधान का काल माना जाता था तब यह अग्रहायण यानी अगहन वर्ष का पहला मास होता था। धीरे धीरे ग्रह-नक्षत्रों की गति बदलती गयी तो आज चैत्र से हम वर्षारम्भ मानते हैं।
ऐतरेय ब्राह्मण की रचना जिन दिनों हो रही थी उन दिनों अग्रहायण मास का महत्त्व आज के चैत्र जैसा ही रहा होगा। सम्भवतः यही कारण है कि यह भगवान् विष्णु के द्वारा प्रशंसित मास है।
अतएव इस मास को भगवान् विष्णु पर केन्द्रित रखा गया है। वैदिक साहित्य में विष्णु का व्यापक वर्णन आया है। ऋग्वेद में उन्हें त्रिविक्रम माना गया है। विष्णुसूक्त (ऋग्वेद. 1.54) में कहा गया है कि सर्वत्र व्याप्त विष्णु के वीर कार्यों को बताता हूँ । जिन्होंने भूमि से सम्बद्ध अग्नि वायु आदि तत्त्वों का सर्जन किया। इनके आधार के रूप में विशाल अन्तरिक्ष का भी निर्माण किया। वे भूमि पर विविध रूप से गमन करते हैं, ऐसे विष्णु की कीर्ति महान लोगों के द्वारा गायी जाती हैं।
व्यापक हैं विष्णु
स्पष्टतः पृथ्वी, आकाश तथा अंतरिक्ष के आधार देव के रूप में विष्णु को सर्वत्र व्याप्त कहा गया है। विष्णु की प्रिया लक्ष्मी जिन्हें श्रीसूक्त में हिरण्यवर्णा तथा हरिणी कहा गया है, उसे हम पकी हुई सुनहली बालियों वाली धान का खेत भी मान सकते हैं, जो अगहन मास में दिखाई पड़ता है। इसी अन्न को लक्ष्मी मानते हैं। अतः हमने धर्मायण के इस अंक को वैष्णव-उपासना पर केन्द्रित रखा है।
यहाँ वेदों में विष्णु के स्वरूप-विवेचन के पश्चात् आगम-साहित्य की वैष्णव परम्परा पर गहन विमर्श विभिन्न लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किये गये हैं। गम की पाँच शाखाएँ हैं- वैष्णव, सौर, शाक्त, शैव तथा गाणपत्य। इनमें ग्रन्थों की संख्या तथा प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी वैष्णव शाखा सबसे प्रधान है।
इस वैष्णवागम की तीन शाखाएँ हैं- पाञ्चरात्र, वैखानस एवं भागवत। तीनों शाखाओं का यहाँ परिचय दिया गया है। विद्वान् लेखकों ने पाठकों के मन में एक चित्र अंकित कर देने की दृष्टि से संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया है। हमें आशा है कि वैष्णव आर्ष-साहित्य का सामान्य परिचय यहाँ पाठकों को मिल जायेगा।
विष्णु की मूर्तियाँ
विष्णु की मूर्तियाँ हमें भारत के सभी क्षेत्रों से मिलतीं हैं। इन मूर्तियों के निर्माण के लिए आगम-गर्न्थों में तथा वास्तु के अन्य संगत ग्रन्थों में शास्त्रीय निर्देश किये गये हैं। शिल्पशास्त्र में यह निर्देश किया गया है कि विष्णु की मूर्ति दशताल विधि से होनी चाहिए, अर्थात् मूर्ति की लम्बाई अधिक होनी चाहिए। विष्णु मूर्ति सम्बन्धी निर्देशों में हमें सर्वत्र विष्णु की श्रेष्ठता का बखान मिलता है। इन विषयों पर भी लेख यहाँ मिलेंगे।
आलेखों की प्रामाणिकता के लिए सन्दर्भ दिये गये हैं। हमें विश्वास है कि ये सभी आलेख अग्रतर शोधार्थियों के लिए तथा ज्ञान के पिपासु पाठकों के लिए उपयोगी होंगे।
कोविड-19 के कारण इसे ई-पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।
- (Title Code- BIHHIN00719),
- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
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- प्रधान सम्पादक आचार्य किशोर कुणाल
- सम्पादक भवनाथ झा
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आलेख-सूची, धर्मायण, वैष्णव-उपासना विशेषांक, मार्गशीर्ष, वि.सं. 2077, दिनांक 01-30 दिसम्बर तक
- विषयानुक्रमणी एवं पाठकीय प्रतिक्रिया
- सम्पादकीय
- वैदिक विष्णु के स्वरूपों का विमर्श—श्री अरुण कुमार उपाध्याय
- “गीता सुगीता कर्तव्या”—आचार्य किशोर कुणाल
- पाञ्चरात्र-साहित्य में वैष्णव-भक्ति—श्री महेश प्रसाद पाठक
- पाञ्चरात्र-साहित्य का विस्तार—डॉ. काशीनाथ मिश्र
- आदि शंकराचार्य कृत ‘विष्णुषट्पदीस्तोत्रʼ में दार्शनिक सिद्धान्त—डॉ सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य
- उपासना पद्धति में पाञ्चरात्र-सिद्धान्त—डॉ. लक्ष्मी कान्त विमल
- भागवतागम की विषयवस्तु—श्री धनञ्जय कुमार झा
- वैखानस सम्प्रदाय: एक दृष्टि—पं. मार्कण्डेय शारदेय
- अध्यात्म-रामायण से रामकथा—आचार्य सीताराम चतुर्वेदी
- प्राचीनतम वैष्णव-स्थापत्य—डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू”
- विष्णु की शास्त्रीय-मूर्ति का स्वरूप—डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजयʼ
- दक्षिण एवं उत्तर की मूर्ति-कलाओं का समन्वय—डॉ. सुशान्त कुमार
- मातृभूमि वन्दना अथर्ववेद से
- व्रतपर्व, अग्रहायण, 2077 वि.सं.
- रामावत संगत से जुड़े
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