मकर संक्रान्ति, 2021 ई.
2021 ई. में मकर संक्रान्ति कब होगी?
दिनांक 14 जनवरी, 2021 ई. को मकर संक्रान्ति है।
मकर संक्रान्ति को तिला संक्रान्ति भी कहते हैं।
मकर-संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं। मकर से लेकर छह संक्रांति मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृष, मिथुन तक उत्तरायण सूर्य कहा जाता है। आगे कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु ये दक्षिणायन होते हैं।
लगभग एक महीने तक सूर्योदय एक राशि में होता है। इस प्रकार जिस राशि पर सूर्य का उदय होता है, उस राशि का सूर्य उतने महीने तक माना जाता है।
- धर्मायण अंक संख्या 140 तीर्थयात्रा-विशेषांकयात्रा चाहे वह किसी प्रकार की न हो व्यक्ति को सर्वथा नये परिवेश में जाना पड़ता है, जिसमें वह नये-नये लोगों से मिलता है, नयी नयी घटनाओं से उसका सामना होता है। मार्ग में अपने घर से विपरीत परिस्थिति से वह गुजरता है। कितनी भी सुविधा के साथ वह यात्रा क्यों न करे, वह सर्वथा ‘स्वस्थ’ नहीं रह पाता है। वहाँ सब कुछ नयापन होता है। यही नवीनता उसके लिए रमणीय होती है। नवता ही रमणीयता है। मैदानी इलाके का व्यक्ति छोटी-छोटी पहाड़ियों पर जाकर भी मचल उठता है और असहज अनुभूतियों को समेट कर लौटता है। यही अनुभूतियाँ जब दूसरों को सुनायी जाती है तो दूसरा व्यक्ति भी रोमांचित हो जाता है। यही कारण है कि यात्रा-साहित्य विश्व भर में सबसे अधिक पठनीय माना गया है।
- धर्मायण अंक संख्या 139 सन्त-साहित्य विशेषांकसनातन धर्म में हर काल में लोक-कल्याण की भावना से समता का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है। काल के प्रवाह में जब कोई वस्तु अप्रासंगिक हो गयी है तो उसकी प्रासंगिकता का विरोध भी हुआ है।
- धर्मायण अंक संख्या 138 लोक-संस्कृति अंकलोक और वेद ये दो शब्द हम सहचर के रूप में व्यवहार करते हैं। वेद सम्पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान का रूप है तो लोक लौकिक ज्ञान को एकत्र समेट लेता है। इसका तात्पर्य है कि जो हम पुस्तकों में पढ़ते हैं, गुरु से सीखते हैं, वह वेद है तथा जो हम समाज में रहकर अपने चारों ओर की वस्तुओं को देखकर परम्परा से सीखते हैं, वह लोक है। इस प्रकार, ज्ञान के दो रूप हुए- लोक और वेद। आहार्य-ज्ञान ‘लोक’ है तथा पाठ्य-ज्ञान ‘वेद’ है, इन्हीं दोनों के संयुक्त रूप को ‘लोक-वेद’ कहा गया है।
- धर्मायण अंक संख्या 137 विवाह-विशेषांकहमें सनातन धर्म में वर्णित विवाह के स्वरूप को दुहराने की आवश्यकता है। सनातन धर्म कहता है कि विवाह एक पवित्र संस्कार है। एक लोटा जल, एक कुश का आसन, मधुपर्क (शहद, दही तथा गुड़ का सम्मिश्रण), वर के लिए दो वस्त्र, कन्या, तथा एक गाय- इतने संसाधन जिस कन्या के पिता के पास बेटी के विवाह के लिए पर्याप्त है।
- धर्मायण अंक संख्या 136 कार्तिक अंकजग-मग- दीप जले
मकर संक्रान्ति के दिन से उत्तरायण सूर्य होते है। देवताओं के दिन का आरम्भ इसी दिन से माना जाता है। इस प्रकार, हर दिन जो महत्त्व प्रातःकाल का होता है, वही महत्त्व पूरे वर्ष में इस दिन का होता है।
मकर संक्रान्ति के दिन हमें प्रातः स्नान कर तिल, चावल, चूड़ा, दही, तिलकुट, भूरा, तिलबा आदि खाना चाहिए और दूसरे को भी खिलाना चाहिए। गृहस्थ-धर्म के अनुसार विना दूसरे को खिलाये इस दिन स्वयं नहीं खायें।
अतिथि-सत्कार गृहस्थों का परम धर्म है। यह मनुष्य-यज्ञ कहलाता है। इससे जो पुण्य मिलता है वह कभी नष्ट नहीं होता।
गृहस्थों का परम धर्म है- दान करना। बुद्धचरित में कहा गया है- जो अपने धन से जरूरतमंद लोगों सहायता नहीं करता, जो अपने बल से दूसरे की रक्षा नहीं करता उसके धन और बल व्यर्थ हैं।
मकर-संक्रान्ति सनातन धर्म का महान् पर्व है। इसे हम सभी साथ-साथ मनायें। हमें इस पर्व के बहाने सामाजिक भेद-भाव से ऊपर उठकर एक होना चाहिए।
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