मकर संक्रान्ति, 2021 ई.

2021 ई. में मकर संक्रान्ति कब होगी?
दिनांक 14 जनवरी, 2021 ई. को मकर संक्रान्ति है।
मकर संक्रान्ति को तिला संक्रान्ति भी कहते हैं।
मकर-संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं। मकर से लेकर छह संक्रांति मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृष, मिथुन तक उत्तरायण सूर्य कहा जाता है। आगे कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु ये दक्षिणायन होते हैं।
लगभग एक महीने तक सूर्योदय एक राशि में होता है। इस प्रकार जिस राशि पर सूर्य का उदय होता है, उस राशि का सूर्य उतने महीने तक माना जाता है।

- धर्मायण अंक संख्या 147 शरद् ऋतु अंकइस वर्ष 2024ई. में दीपावली को लेकर विद्वानों के बीच बहुत वाद-विवाद चला। दिनांक 30 अक्टूबर तथा दिनांक 01 नवम्बर को लेकर विवाद चला था। शास्त्रीय विधि से गणना करने वाले पारम्परिक पंचांगकार जहाँ 30 अक्टूबर को दीपावली मान रहे थे, वहाँ कम्प्यूटरीकृत दृक् पंचांग वाले विद्वान् 01 नवम्बर पर जोर दे रहे थे
- धर्मायण अंक संख्या 148 नारद अंकनारद से सम्बन्धित कथाओं का विश्लेषण करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है उनका एकमात्र लक्ष्य लोक-कल्याण है, चाहे इसके लिए स्वर्ग से क्यों न लड़ना पड़े। नारद के इस व्यक्तित्व को लेकर आधुनिक साहित्य में भी बिम्बयोजना है कि दुःखी जनों के एकमात्र निःस्वार्थ सहायक नारदजी हैं।
- धर्मायण अंक संख्या 142 गृहस्थ-आश्रम-विशेषांकगृहस्थ आश्रम की मर्यादा भारतीय परम्परा में बहुत अधिक है। इनमें से गृहस्थ चूँकि संसाधनों के उत्पादक होते हैं अतः इनकी महत्ता सर्वोपरि है। इसी आश्रम में मानवोपयोगी सभी सामग्रियाँ उत्पन्न की जाती है जिसका उपभोग सभी आश्रमों के लोग करते हैं अतः इसे श्रेष्ठ कहा गया है। यहाँ विचारणीय है कि सनातन परम्परा की दृष्टि में आज हमारा समाज कहाँ जा रहा है? हम किन किन विन्दुओं पर अपनी परम्परा को छोड़कर भटक गये हैं? गार्हस्थ्य जीवन के किन किन मूल विषयों की हानि हो रही है? इन्हीं कुछ विषयों पर हम यहाँ विवेचन करेंगे।
- धर्मायण अंक संख्या 141 लक्ष्मण-चरित विशेषांकलक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। मन्दिरों में राम तथा सीताजी के साथ सदैव उनकी पूजा होती है। लक्ष्मण हर काम में सेवाभाव कूट-कूट के भरा हुआ था। लक्ष्मण जी का बड़े भाई के लिये चौदह वर्ष तक अपनी पत्नी से अलग रहना वैराग्य का अच्छा उदाहरण है। ऐसे महान् कर्मयोगी, धर्मयोगी व अद्भुत योद्धा,
- धर्मायण अंक संख्या 140 तीर्थयात्रा-विशेषांकयात्रा चाहे वह किसी प्रकार की न हो व्यक्ति को सर्वथा नये परिवेश में जाना पड़ता है, जिसमें वह नये-नये लोगों से मिलता है, नयी नयी घटनाओं से उसका सामना होता है। मार्ग में अपने घर से विपरीत परिस्थिति से वह गुजरता है। कितनी भी सुविधा के साथ वह यात्रा क्यों न करे, वह सर्वथा ‘स्वस्थ’ नहीं रह पाता है। वहाँ सब कुछ नयापन होता है। यही नवीनता उसके लिए रमणीय होती है। नवता ही रमणीयता है। मैदानी इलाके का व्यक्ति छोटी-छोटी पहाड़ियों पर जाकर भी मचल उठता है और असहज अनुभूतियों को समेट कर लौटता है। यही अनुभूतियाँ जब दूसरों को सुनायी जाती है तो दूसरा व्यक्ति भी रोमांचित हो जाता है। यही कारण है कि यात्रा-साहित्य विश्व भर में सबसे अधिक पठनीय माना गया है।
मकर संक्रान्ति के दिन से उत्तरायण सूर्य होते है। देवताओं के दिन का आरम्भ इसी दिन से माना जाता है। इस प्रकार, हर दिन जो महत्त्व प्रातःकाल का होता है, वही महत्त्व पूरे वर्ष में इस दिन का होता है।
मकर संक्रान्ति के दिन हमें प्रातः स्नान कर तिल, चावल, चूड़ा, दही, तिलकुट, भूरा, तिलबा आदि खाना चाहिए और दूसरे को भी खिलाना चाहिए। गृहस्थ-धर्म के अनुसार विना दूसरे को खिलाये इस दिन स्वयं नहीं खायें।
अतिथि-सत्कार गृहस्थों का परम धर्म है। यह मनुष्य-यज्ञ कहलाता है। इससे जो पुण्य मिलता है वह कभी नष्ट नहीं होता।

गृहस्थों का परम धर्म है- दान करना। बुद्धचरित में कहा गया है- जो अपने धन से जरूरतमंद लोगों सहायता नहीं करता, जो अपने बल से दूसरे की रक्षा नहीं करता उसके धन और बल व्यर्थ हैं।
मकर-संक्रान्ति सनातन धर्म का महान् पर्व है। इसे हम सभी साथ-साथ मनायें। हमें इस पर्व के बहाने सामाजिक भेद-भाव से ऊपर उठकर एक होना चाहिए।
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