अथ श्रीसर्वसंकष्टहरणं नाम हनुमत्-स्तोत्रम्
यह परम्परा से प्राप्त एक हनुमत् स्तोत्र है। महावीर मन्दिर के प्रकाशन विभाग में एक भक्त बहुत आस्था के साथ इसे लिखकर दे गये थे। उन्होंने बताया था कि उनके वृद्ध दादाजी को किसी साधु ने दिया था। और वे इसका पाठ अत्यन्त आस्था के साथ करते रहे थे। उनकी इच्छा थी कि इसे धर्मायण पत्रिका में प्रकाशित किया जाये।
स्तोत्र में श्रुति परम्परा में रहने के कारण पाठ सम्बन्धी अशुद्धियाँ आ गयी थी, जिसे सुधार करने पर देखा गया तो हनुमान् जी की यह सुन्दर स्तुति है। पाठकों के लिए इसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है
ततः स तुलसीदासः सस्मार रघुनन्दनम्। हनुमन्तं पुरस्तात्तु तुष्टाव भक्तवत्सलम्।।1।। धनुर्बाणधरो वीरः सीतालक्ष्मणसंयुतः। रामचन्द्रः सहायो मे किं कार्यं सत्यं मम।।2।। हनुमान् अञ्जनीसुनुर्वायुपुत्रो महाबलः। सर्वसंकष्टहरणं विपत्तौ शरणम् भव।।3।। महालांगूलनिक्षेपनिहताखिलराक्षस। सर्वसंकष्टहरणं विपत्तौ शरणम् भव।।4।। अक्षवक्षो विविच्छेद कुलिशाग्रनखाञ्चितः। सिंहनादहतामित्र विपत्तौ शरणं भव।।5।। लक्ष्मणे निहिते भूमौ नीत्वा द्रोणाचलं गुरुम्। तयोर्जीवितवान् दयतान् शक्तिप्रकटं कुरु।।6।। जय लंकां प्रविष्टस्तव ज्ञात्वा जानकीं स्वयम्। रावणान्तःपुरेत्युग्रे तां बुद्धिं प्रकटीकुरु।।7।। येन लंकेश्वरो वीरो निहतो विजितस्त्वया। दुर्निरीक्ष्योऽपि देवानां तद्बलं दर्शयाधुना।।8।। रुद्रावतार भक्तार्तिविमोचनमहाभुज। कपिराज प्रसन्नस्त्वं शरणं भव रक्ष माम्।।9।। इत्यष्टकं हनुमतो सर्वध्यानेन यः पठेत्। सर्वसंकष्टनिर्मुक्तो लभते वांच्छितं फलम्।।10।।
इस स्तोत्र में स्तोत्र के वक्ता का नाम तुलसीदास आया हुआ है। परम्परा में एसे अनेक स्तोत्र हैं, जिनके साथ महान् विभूतियों के नाम जुड़े हुए हैं। तुलसीदास इस प्राचीन स्तोत्र से तुति करते रहे होंगे। बाद में उनके शिष्यों ने प्रथम श्लोक इसमें जोडकर स्तोत्र को प्रसारित किया होगा।
भगवान् सर्वज्ञ हैं। उनकी कृपा से इस स्तोत्र का पाठ करने वाले अवश्य संकटों से उबरते रहेंगे।
[स्रोत- ]
श्री टुनटुन सिंह परमार, हनुमतपुरी बनौली, जिला- मुजप्फरपुर। जन्म- 6 दिसम्बर 1920 ई.। निधन- 15 जनवरी, 2021 ई.। ये स्वतंत्रता सेनानी रहे तथा कमलपुरा उच्च विद्यालय में गणित शिक्षक रहे। हनुमानजी के परम भक्त थे। इन्हीं को बहुत दिन पहले एक साधु ने मौखिक रूपसे यह मन्त्र दिया था।
धर्म परायण वास्तव मे एक बहुत उपयोगी संकलन है