भाई-बहन के अटूट सम्बन्ध का पर्व है भैया दूज

मगध की संस्कृति में कैसे मनाया जाता है भैयादूज?
आजू मोरे अपने भइया अइहें मेहमान गे माई
कैसे कैसे राखब माई हे अपने भइया के मान गे माई
बोलले दुलारू बाबू सुनह हमर बात गे माई
कोठी भरत सैंतल चउरा पनबट्टे भरत पान गे माई
नीके सुखे रखिहऽ हे धानी अपने भइया के मान गे माई
लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत में अवधारणा है कि यमराज इस दिन अपनी बहन यमुना के घर जाते हैं तथा उनके घर का भोजन ग्रहण करते हैं।
इसकी स्मृति में यम-द्वितीया मनायी जाती है, जिसमें भाई अपनी बहन के घर जाते हैं तथा उनके यहाँ अन्न खाते हैं।
यदि बहन का विवाह नहीं हुआ है तो अपने ही घर में बहन के हाथ से दिया हुआ अन्न खाते हैं।
केराव (कलाय) अन्न है, इसे अंकुरित कराया जाता है। जो दाना न तो अंकुर देता है नही वह कोमल होता है, वज्र के समान कठोर होता है, उसे चुनकर बहन अपने हाथ से भाई को देती है। कामना करती है कि भाई के दाँत इतने मजबूत हों कि वह इसे भी चबा जाये।
इस भैया दूज की मुख्य बात है, बहन के घर भोजन करना, पर इसे मनाने की विधि अलग अलग है। यहाँ मगध क्षेत्र के लोकाचार का प्रलेखन प्रस्तुत है। लेखिका का यह अनुभूत विषय है अतः लेख की प्रामाणिकता है। जिस प्रकार आज लोक-संस्कृति विकृत होती जा रही है, उसमें आशा है कि भविष्य में यह आलेख बहुत काम देगा। यहाँ चार पारम्परिक गीत भी दिये गये हैं।

श्रीमती आरती मिश्रा ‘मानव’ का आलेख “मगध क्षेत्र में यम द्वितीया- भैया दूज”, धर्मायण, अंक 124, यम-विशेषांक, पृ.50-53
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक