1. ऋषि, सप्तर्षि एवं उनके स्वरूप- डा. रामाधार शर्मा
जब हम तारों से भरे आकाश को रात में देखते हैं तो कुछ तारों का समूह हमें दिखाई पड़ता है। इस पूरे समूह का स्थान समय के अनुसार परिवर्तित होते रहता है। हमारे पूर्वजों ने इसी का अवलोकन कर स्थान, समय तथा दिशा का निर्धारण कर ऋतु के साथ उसके सम्बन्धों को पहचाना और उसका लेखन ज्यौतिष शास्त्र के रूप में किया। इसके लिए उन्होंने प्रत्येक समूह का नामकरण पुराकथाओं के आधार पर किया। जिस समय तारा समूह का नामकरण हुआ सप्तर्षि हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग बन चुके थे। इसी सप्तर्षि मण्डल पर खगोल-शास्त्रीय आलेख पढ़ें।
शर्मा, रामाधार (डा.), “ऋषि, सप्तर्षि एवं उनके स्वरूप”, धर्मायण, अक सं. 110, सप्तर्षि विशेषांक, महावीर मन्दिर पटना, भाद्रपद, 2078, (अगस्त-सितम्बर, 2021ई.), पटना, पृ. 4-10
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक