महाशिवरात्रि महत्व एवं शिव महिमा

लेखक- श्री जगन्नाथ करंजे
लिङ्गायत शैव आगम एवं दर्शन के विद्वान्,
बीदर, कर्णाटक
जो प्रभु शिव की महिमा वेद , अगम और पुराण को अगम्य है। विधि हरी इंद्रादि देव , सनकादि ऋषि , रावणादि दानव , रामकृष्णादि मानव , नंदी आदि पशु नागादि जंतु और सूर्यचंद्रादि गृह शिव के शरण में जा के शिवत्व में समाविष्ट हुए है लेकिन शिव जी के आदि और अंत की गहराई नहीं जान पाये है क्यों की शिव पूर्ण है पूर्ण को पहचान ने के लिए केवल एक ही मार्ग है ह पूर्ण में समाविष्ट होना जब पूर्ण में समाविष्ट हो जाये तो शिवाद्वैत हो जायेगा तब पहचान ने का कोई शेष नहीं रहेगा अर्थार्त शिवत्व जान ने के लिए शिव ही सक्षम है । सभी के कल्याण करने वाले प्रभु पशुापति शिव जी को मै जान नहीं पाहता लेकिन मह्त्माओं से वर्णित उस शिव जी के महिमा को मै अपने अल्प बुद्धि से अबद्ध शब्दों से महा शिवरात्रि के शुभ अवसर पर सभी शिव भक्तो के श्री चरण को नमन करते हुए इस लेख को आप सभी के लिए शुभकामाएं के रूप में प्रस्तुत करते शिव जी के श्री चरणों में बिल्वपुष्प रूप शिव कृपा से मेरे वाणी से निकली चार शब्द समर्पण करता हूँ।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।
शिवरात्रि का अर्थ है, शिवजी की रात्रि और यह भगवान शिवजी के सम्मान में मनायी जाती है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शिव ध्यानस्थ स्वरुप हैं | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सिर्फ शिव ही व्याप्त हैं | यह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अणु में व्याप्त हैं | इनका कोई आकार या रूप नहीं हैं परन्तु यह सभी आकार या रूप में मौजूद हैं और करुणा से परिपूर्ण हैं | लिंग का अर्थ चिन्ह होता हैं और इस तरह इसका प्रयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के रूप में होने लगा | सम्पूर्ण चेतना की पहचान लिंग के रूप में होती है| तमिल भाषा में एक कहावत हैं “अंबे शिवन , शिवन अंबे” जिसका अर्थ है शिव प्रेम हैं और प्रेम ही शिव है,सम्पूर्ण सृष्टि की आत्मा को ईश या शिव कहते हैं |
श्रद्धालु इस दिन रजस और तमस को संतुलन में लाने के लिए और सत्व (वह मौलिक गुण जिससे कृत्य सफल होते हैं) में बढ़ोत्तरी करने के लिए उपवास करते हैं | ॐ नमः शिवाय मंत्रोचारण की गूँज निरंतर होती रहती हैं| मंत्र उच्चारण वातावरण, मन और शरीर में पंच महाभूतो का संतुलन बनाता है।
इस शुभ उर्जा को पृथ्वी पर लाकर हमारे स्वयं को और समृद्ध बनाने के लिए पारंपरिक अनुष्ठान किये जाते हैं,परन्तु भक्ति भाव सबसे महत्वपूर्ण है | पर्यावरण और मन के पांच तत्वों में सामंजस्य लाने के लिए ॐ नमः शिवाय का मंत्रोचारण किया जाता है|
सम्पूर्ण सृष्टि शिव का नृत्य है, सारी सृष्टि चेतना सिर्फ एक चेतना। उस एक बीज, एक चेतना के नृत्य से
सारे विश्व में लाखो हजारों प्रजातियाँ प्रकट हुई हैं| इसलिए यह असीमित सृष्टि शिव का नृत्य है – “शिव तांडव”;
शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पूजा का क्या महत्त्व :- वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) ही शिव लिंग है। लिंग का अर्थ शिवाचार्यों ने बहुत ही सुंदर डंग से व्याख्या किये है सिद्धांत शिखामणि में नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | से उलेख लेते हुवे लिंग का तात्पर्य बताते है विविध प्रकार से निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् :-भावार्थ
जिसमे प्रवेश करना एवं निकलना होता है वह आकाश का लिंग है । अर्थात ये आकाश के गुण है ।
अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि :-भावार्थ
जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर , (चिरम) विलम्ब , क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है , इसको काल कहते है , अर्थात ये काल के लिंग है ।
इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम :-भावार्थ
जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण , ऊपर व् निचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते है अर्थात ये सभी दिशा के लिंग है ।
इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति – :-भावार्थ
जिसमे (इच्छा) राग , (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ , सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो , वः जीवात्मा है ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। और परम तत्व को जानने के कारन शिव लिंग पूजा जाता है ।
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक