2. ब्रह्म-सभा – श्री महेश प्रसाद पाठक
धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की मासिक हिन्दी पत्रिका।
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल, सम्पादक- पण्डित भवनाथ झा।
धर्मायण, अंक संख्या 109, ब्रह्मा विशेषांक, विक्रम संवत् 2078, 25 जुलाई से 22 अगस्त, 2021 ई. तक।
सनातन धर्म में ब्रह्मा सृष्टि की रचना करनेवाले स्रष्टा माने गये हैं, वे ही विधाता, अर्थात् धारण और पोषण करनेवाले देवता माने गये हैं। ब्रह्मा का एक नाम है- द्रुघण, यानी वे इस संसार के वृक्ष को काटने वाले हैं, यानी संहारकर्ता भी हैं। जहाँ देवताओं का उल्लेख सामूहिक रूप से होता है, वहाँ– ब्रह्मादिदेव, कहा जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण देव, ब्रह्मा, की उपासना नहीं होती है- ऐसा दुष्प्रचार वर्तमान में प्रचलित है। ब्रह्मा के विषय में अनेक गलत धारणाऐँ फैलायी गयी हैं। समेकित अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्प्रचार बहुत पुराने नहीं हैं। सम्भवतः विगत दो शतकों में ये फैलाये गये हों। हमें ब्रह्मा के अनेक मन्दिर मिले हैं, अनेक मन्दिरों में उनकी पूजा होती है। इस अंक में ब्रह्मा के सम्बन्ध में वैदिक तथा पौराणिक साहित्य से प्रामाणिक प्रसंगों को लेकर उनकी महत्ता सिद्ध की गयी है। पत्रिका में देश भर के स्थापित विद्वानों ने अपना आलेख देकर इस अंक का गौरव बढ़ाया है।
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इस अंक में कुल 11 आलेख प्रकाशित हैं। साथ ही, पत्रिका के स्थायी स्तम्भ भी हैं, जिनमें महावीर मन्दिर पटना के द्वारा जुलाई, 2021ई. में स्वास्थ्य-क्षेत्र में किये गये जनहित कार्यों का उल्लेख किया गया है।
ब्रह्मा सृष्टिकर्ता माने गये हैं। उनका वर्णन ब्राह्मणग्रन्थों से लेकर पौराणिक साहित्य में प्रचुर हुआ है। महाभारत भी ब्रह्मा की सभा का विशद वर्णन प्रस्तुत करता है, जिसमें सभी देव, पितर, ऋषि आदि उपस्थित रहते हैं। इसी ब्रह्मसभा का उल्लेक बाणभट्ट ने हर्षचरित के आरम्भ में भी किया है। बाणभट्ट ने स्पष्ट रूप से देवी सरस्वती को ब्रह्मा की शक्ति मानकर दुर्वासा के शाप का प्रसंग उपस्थापित किया है, जिसके कारण सारस्वत का जन्म हुआ जो बाणभट्ट के पूर्वज थे। यहाँ लेखक ब्राह्मण-ग्रन्थों तथा पुराणों के आधार पर ब्रह्मा का विवेचन करते हुए महाभारत की ब्रह्म-सभा का विवरण दिया है।
- पाठक, महेश प्रसाद, “ब्रह्म-सभा”, धर्मायण, अंक 109, श्रावण, 2078 वि.सं., जुलाई-अगस्त, 2021 ई., महावीर मन्दिर, पटना, पृ. 7-11.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक