10. ब्रह्मतत्त्व-विमर्श- डॉ. धीरेन्द्र झा

भारत ब्रह्मदर्शन का राष्ट्र रहा है। यहाँ हम चिन्तन के उस स्तर पर पहुँचे हुए हैं, जहाँ चराचर जगत् में सभी पदार्थों में एकता का भाव है, वही एकता ब्रह्म है, वहाँ पहुँचकर सारे भेद-भाव दूर हो जाते हैं। अपना-पराया, ऊँच-नीच की भावना सब समाप्त हो जाते हैं और हम व्यावहारिक रूप से ब्राह्मण-चाण्डाल, गाय-कुत्ता-हाथी सब को समान भाव से देखने लगते हैं। यही हमारी संस्कृति की मूल पाण्डित्य-परम्परा है। हम वही समदर्शी पण्डित बनें इसके लिए ब्रह्म को जानना जरूरी है।
झा, धीरेन्द्र (डा.), “महामहोपाध्याय मधुसूदन ओझा द्वारा प्रतिपादित ब्रह्मतत्त्व-विमर्श”, धर्मायण, अक सं. 110, सप्तर्षि विशेषांक, महावीर मन्दिर पटना, भाद्रपद, 2078, (अगस्त-सितम्बर, 2021ई.), पटना, पृ. 70-77.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक