6. ऋषि परम्परा में सप्तर्षि- डॉ. ललित मोहन जोशी
ऋषि हमारे शरीर के अंगों पर अवस्थित माने गये हैं। यह अवधारणा बृहदारण्यक उपनिषद् से चलकर आज भी मन्त्रों के अङ्गन्यास तथा करन्यास में संरक्षित है। हम यदि कुछ गलत करते हैं तो वह उन ऋषियों की अवमानना है। एकाकी रहने पर भी इतने सारे ऋषि हमारे साथ हैं, यह अवधारणा हमें बल देती है, वशर्ते हमर उऩकी परम्परा का पालन करते रहें जो कि सर्वजनहिताय तथा सर्वजनसुखाय के लिए है। इसके साथ ही यहाँ कण्वाश्रम तथा सप्तर्षि आश्रम का विस्तृत परिचय दिया गया है।
जोशी, ललित मोहन (डा.), “ऋषि परम्परा में सप्तर्षि”, धर्मायण, अक सं. 110, सप्तर्षि विशेषांक, महावीर मन्दिर पटना, भाद्रपद, 2078, (अगस्त-सितम्बर, 2021ई.), पटना, पृ. 35-44.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक