6. ब्रह्म और ब्रह्मा- श्री अरुण कुमार उपाध्याय
धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की मासिक हिन्दी पत्रिका।
प्रधान सम्पादक- आचार्य किशोर कुणाल, सम्पादक- पण्डित भवनाथ झा।
धर्मायण, अंक संख्या 109, ब्रह्मा विशेषांक, विक्रम संवत् 2078, 25 जुलाई से 22 अगस्त, 2021 ई. तक।
सनातन धर्म में ब्रह्मा सृष्टि की रचना करनेवाले स्रष्टा माने गये हैं, वे ही विधाता, अर्थात् धारण और पोषण करनेवाले देवता माने गये हैं। ब्रह्मा का एक नाम है- द्रुघण, यानी वे इस संसार के वृक्ष को काटने वाले हैं, यानी संहारकर्ता भी हैं। जहाँ देवताओं का उल्लेख सामूहिक रूप से होता है, वहाँ– ब्रह्मादिदेव, कहा जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण देव, ब्रह्मा, की उपासना नहीं होती है- ऐसा दुष्प्रचार वर्तमान में प्रचलित है। ब्रह्मा के विषय में अनेक गलत धारणाऐँ फैलायी गयी हैं। समेकित अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्प्रचार बहुत पुराने नहीं हैं। सम्भवतः विगत दो शतकों में ये फैलाये गये हों। हमें ब्रह्मा के अनेक मन्दिर मिले हैं, अनेक मन्दिरों में उनकी पूजा होती है। इस अंक में ब्रह्मा के सम्बन्ध में वैदिक तथा पौराणिक साहित्य से प्रामाणिक प्रसंगों को लेकर उनकी महत्ता सिद्ध की गयी है। पत्रिका में देश भर के स्थापित विद्वानों ने अपना आलेख देकर इस अंक का गौरव बढ़ाया है।
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इस अंक में कुल 11 आलेख प्रकाशित हैं। साथ ही, पत्रिका के स्थायी स्तम्भ भी हैं, जिनमें महावीर मन्दिर पटना के द्वारा जुलाई, 2021ई. में स्वास्थ्य-क्षेत्र में किये गये जनहित कार्यों का उल्लेख किया गया है।
भारतीय चिन्तन की दृष्टि से ब्रह्मा आदिदेव हैं, वे अपने निर्गुण रूप में दर्शन शास्त्र में प्रतिपादित ब्रह्म हैं, तथा सगुण रूप में सृष्टिकर्ता, चतुर्मुख, सरस्वती के स्वामी, भाग्य विधाता ब्रह्मा हैं। प्राच्य विद्या के मर्मज्ञ विद्वान् लेखक ने स्पष्ट किया है कि- “विश्व का मूल अव्यक्त चेतन तत्त्व ब्रह्म है। ब्रह्म का स्रष्टा रूप ब्रह्मा है। विष्णु के नाभि से कमल निकला और उस कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ। विष्णु को पद्मनाभ और ब्रह्मा को पद्मज कहा गया है। आकाश का दिव्य स्रष्टा तत्त्व अमृत ब्रह्मा है, पृथ्वी पर सभ्यता का विकास करने वाले मर्त्य ब्रह्मा हैं।”
- उपाध्याय, अरुण कुमार, “ब्रह्म और ब्रह्मा”, धर्मायण, अंक 109, श्रावण, 2078 वि.सं., जुलाई-अगस्त, 2021 ई., महावीर मन्दिर, पटना, पृ. 40-49.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक