Tag: Mahavir Mandir Patna
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धर्मायण, अंक संख्या 116 शिव-तत्त्व अंक
‘धर्मायणʼ का अगला फाल्गुन मास का अंक इस बार भगवान् शिव को समर्पित है। फाल्गुन मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि महापर्व मनाया जाता ... -
धर्मायण, अंक संख्या 115, सरस्वती-अंक
सनातन धर्म में विद्या की देवी के रूप में सरस्वती की पूजा प्राचीन काल से प्रचलित है। यद्यपि वैदिक वाङ्मय में जिस सरस्वती का उल्लेख है, ... -
दक्षिण बिहार के कुछ प्रसिद्ध विष्णु मंदिर-श्री रवि संगम
बिहार पर्यटन की दृष्टि से विविधताओं से भरा हुआ है। यहाँ बौद्ध, जैन, सिख, सूफी, तथा सनातन धर्म की भी विभिन्न शाखाओं के प्राचीन पर्यटन-स्थल हैं, ... -
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक
पूर्वोत्तर भारत में मध्यकाल की दार्शनिक धारा के सिद्धान्त प्रतिपादक निबन्धकार परमहंस विष्णुपुरी भक्ति-दर्शन के गौरवमय पुरुष हैं। इन्होंने श्रीमद्भागवत से श्लोकों का संकलन कर उन्हीं ... -
धर्मायण, अंक संख्या 113, हनुमान अंक, 2
यह अंक “सकल अमंगल-मूल निकंदन” यानी सभी विघ्न-बाधाओं की जड़ को ही उखाड़ फेंकने वाले महावीर हनुमानजी को अर्पित है। हनुमानजी के देवत्व स्वरूप की सबसे ... -
डा. नागेन्द्र कुमार शर्मा
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, राम जयपाल महाविद्यालय, छपरा, (जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा) -
डॉ० रामकिशोर झा ‘विभाकर’
मैथिली, हिन्दी एवं संस्कृत के विद्वान्, साहित्यकार, अनुवादक तथा सम्पादक डॉ० रामकिशोर झा ‘विभाकर’ धर्मायण पत्रिका के लेखक रहे हैं। -
लेखकों से निवेदन, शोधपरक आलेख आमन्त्रित, लेखकों को दी जाती है सम्मान-राशि।
‘धर्मायण’ के अगले अंक, (अंक संख्या 118, वैशाख, सं. 2079) के लिए प्रस्ताव की पृष्ठभूमि- “लोक-देवताओं के रूप में परशुराम, नरसिंह, कूर्म एवं बुद्ध की उपासना” -
श्री गिरिजानन्द सिंह
1. मैथिली कथा 'परंपरा', 'पूजाक पोथी', 'हमरा बिसरब जुनि' एवं Banaili, Roots to Raj हिंदी रूपांतर "बनैली मूल से राज तक" के लेखक श्री गिरिजानन्द सिंह इतिहास ... -
आलेख संख्या- 12. “कालिदासकृत रघुवंशकी रामायण-कथा- रामकथा” लेखक आचार्य सीताराम चतुर्वेदी भाग 2
देश के अप्रतिम विद्वान् आचार्य सीताराम चतुर्वेदी हमारे यहाँ अतिथिदेव के रूप में करीब ढाई वर्ष रहे और हमारे आग्रह पर उन्होंने समग्र वाल्मीकि रामायण का ...
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
महावीर मन्दिर प्रकाशन
धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक