4. जगन्नाथ-लीला का दार्शनिक विमर्श- डा. सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य

यह सम्पूर्ण चराचर जगत् प्रभु की लीलाभूमि है। वे हम मर्त्यों को शिक्षा देने के लिए, साधुओं के त्राण के लिए तथा असाधुओं के विनाश के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। वे इस जगत् में भक्तों के प्रेम में वशीभूत होकर लीला करते हैं- यही भक्तिदर्शन का मूलाधार है। भगवान् जगन्नाथ के रूप में उसी परब्रह्म की लीला का भी अपना दार्शनिक स्वरूप है। इसी दार्शनिक स्वरूप को द्वैत एवं विशिष्टाद्वैत दर्शन के परिप्रेक्ष्य में दर्शनशास्त्र के अधीती लेखक ने यहाँ स्पष्ट किया है।
सन्दर्भ
- शाण्डिल्य, डा. सुदर्शन श्रीनिवास, “जगन्नाथ-लीला का दार्शनिक विमर्श”, धर्मायण, अंक 108, आषाढ़, 2078 वि.सं., जून-जुलाई, 2021 ई., महावीर मन्दिर, पटना, पृ. 24-27.
- Shandilya, Dr. Sudarshan Srinivas, “The Philosophical Discourse of Jagannath-Leela”, (A paper in Hindi language), Dharmayan, Volume 108, Ashadh, 2078 Vs., June-July, 2021 AD, Mahavir Mandir, Patna, p. 24-27.
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक