दशतारक किसे कहते हैं?
प्राचीन काल में हमारा जन-जीवन वर्षा पर निर्भर करता था। आर्द्रा नक्षत्र से हस्त नक्षत्र तक वर्षा का समय होता है। इन महींनों में वर्षा होने से फसल उपजती है। डाक के वचन हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत होते थे, जिसपर कृषि-विज्ञान आधारित था। डाक का वचन है कि –
आदि न बरसे आदरा अंत न बरसे हस्त। कहे घाघ दोनों गये पाहुन ओ गिरहस्त।
यहाँ श्लेष अलंकार है। ‘आदरा’ और ‘हस्त’ ये दोनों शब्द ‘पाहुन’ यानी अतिथि और ‘गिरहस्त’ यानी गृहस्थ यानी किसान दोनों के सन्दर्भ में मायने रखते हैं। यदि अतिथि के आने के साथ ही उनका आदर न किया जाये और जाते समय उनके हाथ में कुछ भेंट के रूप में रुपये-पैसे या कोई अन्य वस्तुएँ न दी जाये तो अतिथि गौरवान्वित नहीं होते हैं। इसी प्रकार, यदि वर्षाकाल के आरम्भ में आर्द्रा नक्षत्र में तथा अन्त में हस्त नक्षत्र में वर्षा न हो तो गृहस्थों की स्थित अच्छी नहीं रहती है।
प्राचीन काल में यह जानने का प्रयास किय़ा जाता रहा है, कि अगले साल वर्षा होगी या नहीं। इस पूर्वानुमान के आधार पर लोग फसल का चुनाव करते थे। इस पूर्वानुमान के लिए पौष मास में निरीक्षण आवश्यक था. इसी सिलसिले में दशतारक का विधान ज्य़ोतिष शास्त्र में इस प्रकार किया गया है।
मूल श्लोक
पौषे मूलभरण्यन्तं चन्द्रचारेण गर्भति। आर्द्रादितो विशाखान्तं सूर्यचारेण वर्षति।। वाताभ्रगर्जत्तडितोदकानि हिमप्रपातः करकावघातः। अकालसन्ध्यापरिवेषणञ्च नवप्रकारैः प्रभवन्ति गर्भा।।
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कौन कौन हैं ये दश नक्षत्र?
यह प्राचीन भारत में वर्षा सम्बन्धी भविष्यवाणी का एक रूप है। पौष मास में मूल नक्षत्र के अन्त से लेकर भरणी नक्षत्र तक ‘दशतारकʼ कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में पूर्वाषाढ, उत्तराषाढ, श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र, रेवती, अश्विनी, तथा भरणी ये दश नक्षत्र आते हैं। ये दस दिन लगभग पौष मास की अमावस्या से दशमी तक रहता है।
यहाँ कहा गया है कि इन दस नक्षत्रों वाले दिनों में यदि चन्द्रमा के संचार होने पर मेघ गर्भ धारण करता है, तो आर्द्रा से विशाखा तक 10 नक्षत्रों में सूर्य के रहने पर अर्थात् आषाढ से अग्रहायण मास तक अच्छी वर्षा होती है।
क्या क्या देखना चाहिए?
नौ प्रकार की घटना होने पर मेघ का गर्भधारण माना जाता है-
- तेज हवा बहना। 2. बादल लगना। 3. मेघ का गरजना। 4. बिजली चमकना। 5. वर्षा होना। 6. ओला गिरना। 7. वज्रपात होना। 8. विना समय का भी सन्ध्या-जैसा हो जाना। 9. चन्द्रमा एवं सूर्य के चारों ओर मण्डल बनना। इन नौ लक्षणों से मेघ का गर्भ धारण माना जाता है।
महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक