परशुराम के द्वारा सहस्रार्जुन का वध- लल्लू लाल कृत ‘प्रेम सागरʼ से उद्धृत

जनभाषा के माध्यम के भागवत पर आधारित श्रीकृष्णकथा की कथा लालच दास कृत हरिचरित्र, मनबोध कृत कृष्णजन्म आदि प्राचीन शैली के काव्यों के द्वारा जन मानस में फैल चुकी थी। 1810 ई. में बुकानन ने पूर्णिया रिपोर्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। 19वीं शताब्दी में हिन्दुस्तानी भाषा पढाने के उद्देश्य से इस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों के द्वारा कुछ रचनाएँ लिखायी गयीं, जिनमें कृष्णकथा से सम्बद्ध रचनाओं में चतुर्भुज मिश्र का “ब्रजविलास” तथा लल्लूलाल का “प्रेमसागर” अविस्मरणीय हैं। वास्तव में चतुर्भुज मिश्र की व्रजभाषा की इस छन्दोबद्ध रचना का हिन्दी की खड़ी बोली के गद्य में अनुवाद लल्लू लाल ने संवत् 1830 अर्थात् 1774ई. में की थी। इसका प्रकाशन 1810 ई. में फोर्ट विलियम कालेज से हुआ था। लल्लू लाल के द्वारा किया गया यह गद्यानुवाद प्रेमसागर के नाम से विख्यात हुआ। गद्य होने के कारण इसकी अधिक लोकप्रियता देखने को मिलती है। लखनउ के नवल किशोर प्रेस से इसके कई संस्करण प्रकाशित हुए। प्रेमसागर की भूमिका से पता चलता है कि हिन्दुस्तानी भाषा के विभिन्न पाठ्यक्रमों में भी इसे सम्मिलित किया गया था। यहाँ धर्मायण के पाठकों के लिए प्रेमसागर से परशुराम के द्वारा सहस्रार्जुन के वध का प्रसंग संकलित किया गया है। इस कथा से स्पष्ट है कि सहस्रार्जुन परशुराम का मौसा था। परशुराम ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए युद्ध में सहस्रार्जुन का वध किया। प्रेम सागर में यह कथा 82वें अध्याय में आयी है।
- Lalloo Lal. “parashuraam ke dvaara sahasraarjun ka vadh”, an excerpt from Prema Sagar, 2021, (Reprint) Dharmayan, Mahavir mandir, Patna, vol. 106, pp. 68-70.
- लल्लू लाल, “परशुराम के द्वारा सहस्रार्जुन का वध”, प्रेमसागर से उद्धृत, 2021, धर्मायण, महावीर मन्दिर पटना, अंक सं. 106, पृ. 68-70.
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महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक