दुर्गा-सप्तशती में शक्ति का दार्शनिक स्वरूप- डा. लक्ष्मीकान्त विमल

दुर्गासप्तशती के प्रथम अध्याय में ब्रह्मकृत निद्रा देवी की स्तुति है। इस लघुकाय अंश में शक्ति का व्यापक वर्णन अद्वैत वेदान्त तथा विशिष्टाद्वैत, दोनों के सन्दर्भ में हुआ है। इस अंश के टीकाकारों ने सृष्टि से पूर्व हरिनेत्रकृतालया देवी को आद्याशक्ति मानकर जगत् की सृष्टि, स्थिति एवं विनाश के कारण के रूप में व्याख्यायित किया है। मूलतः दर्शन के अधीती विद्वान् लेखक ने इस अंश के आधार पर शक्ति-विमर्श की दार्शनिक विवेचना की है।
- Vimal, Lakshmikant, “durga-saptashatee mein shakti ka daarshanik svaroop”, 2021, Dharmayan, Mahavir mandir, Patna, vol. 106, pp. 34-38,45.
- विमल, लक्ष्मीकान्त, “दुर्गा-सप्तशती में शक्ति का दार्शनिक स्वरूप”, 2021, धर्मायण, महावीर मन्दिर पटना, अंक सं. 106, पृ. 34-38-45.
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- धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की पत्रिका,
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महावीर मन्दिर प्रकाशन
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धर्मायण, अंक संख्या 114, परमहंस विष्णुपुरी विशेषांक